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________________ गाथा - १०० विगत गाथा में द्रव्यों की मूर्तता एवं अमूर्तता का व्याख्यान किया। प्रस्तुत गाथा में काल द्रव्य का व्याख्यान करते हैं । मूल गाथा इसप्रकार है ह्र कालो परिणामभवो परिणामो दव्वकालसंभूदो । दोहं एस सहावो कालो खणभंगुरो णियदो । । १०० ।। (हरिगीत) क्षणिक है व्यवहार काल अरु नित्य निश्चय काल है। परिणाम से हो का उद्भव काल से परिणाम भी ॥ १०० ॥ व्यवहार काल का माप जीव पुद्गलों के परिणाम से होता है । परिणाम द्रव्यकाल से उत्पन्न होता है। यह दोनों का स्वभाव है । काल क्षणभंगुर तथा नित्य है। आचार्य अमृतचन्द्र टीका में कहते हैं कि ह्न “यह व्यवहार काल तथा निश्चय काल का व्याख्यान है। 'समय' नाम की जो क्रमिक पर्याय है वह व्यवहारकाल है उसके आधारभूतद्रव्य निश्चयकाल है। व्यवहारकाल निश्चय काल पर्याय होने पर भी जीव पुद्गलों के परिणाम से नपता है, ज्ञात होता है। इसलिए “जीव पुद्गलों के परिणाम बहिरंग-निमित्त भूत द्रव्यकाल के सद्भाव में उत्पन्न होने के कारण द्रव्यकाल से उत्पन्न होनेवाले कहलाते हैं।" तात्पर्य यह है कि व्यवहारकाल जीव-पुद्गलों के परिणाम द्वारा निश्चित होता है और निश्चयकाल जीव- पुद्गलों की अन्यथा अनुत्पत्ति द्वारा निश्चित होता है। अन्यथा अनुत्पत्ति अर्थात् जीव व पुद्गलों के परिणाम अन्य प्रकार से नहीं बन सकते । (174) कालद्रव्य (गाथा १०० से १०२ ) ३३१ व्यवहारकाल क्षणभंगुर हैं एवं निश्चयकाल नित्य है, क्योंकि व्यवहारकाल एक समयमात्र जितना ही है और निश्चयकाल अपने गुणपर्यायों के आधारभूत द्रव्यरूप से सदैव रहता है, अविनाशी है। कवि हीरानन्दजी काव्य में कहते हैं ह्र (दोहा) छिन भंगुर विवहारतें, सूच्छिम परजय मान । निहचैकाल अचलसदा, गुनपरिजाय निधान ।।४३४ ।। समै काल विवहार है, निहचै काल सरूप । दोनों की वरनन कह्या जथा मान अनुरूप ।।४३५ ।। कवि कहते हैं कि व्यवहारकाल क्षणभंगुर है, एक समय की सूक्ष्म पर्याय है तथा निश्चयकाल अचल है। समय, घड़ी, घंटा आदि व्यवहार काल है। गुरुदेवश्री कानजीस्वामी अपने व्याख्यान में कहते हैं कि ह्न “जो क्रम से अतिसूक्ष्म प्रवर्तता है, वह व्यवहारकाल है तथा उस व्यवहारकाल का आधार निश्चयकाल है। काल शब्द से कथित काल नामक द्रव्य भी है। व्यवहारकाल एकसमय की पर्याय है, तथा निश्चयकाल पर्यायवान है। व्यवहारकाल निश्चयकाल से उत्पन्न होता है। उसमें पुद्गल द्रव्य की जीर्ण होनेरूप अवस्था निमित्त है, इसकारण जीव- पुद्गल के परिणाम अर्थात् परिणमन से व्यवहार काल का माप होता है। इससे यह नक्की होता है समय आदि व्यवहार काल है। समय आदि व्यवहारकाल है तो उसके साथ - अविनाभाव सम्बन्ध से निश्चयकाल भी द्रव्य है ह्न यह सिद्ध होता है। व्यवहार काल क्षणिक एवं निश्चयकाल नित्य है। " इसप्रकार कालद्रव्य के अस्तित्व को सिद्ध किया । १. श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद नं. १८०, पृष्ठ- १४३७, दिनांक १९-४-५२
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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