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________________ नियमसार जीवादीदव्वाणं परिवट्टणकारणं हवे कालो। धम्मादिचउण्हं णं सहावगुणपज्जया होंति ।।३३।। जीवादिद्रव्याणां परिवर्तनकारणं भवेत्कालः। धर्मादिचतुर्णां स्वभावगुणपर्याया भवंति ।।३३।। कालादिशुद्धामूर्ताचेतनद्रव्याणां स्वस्वभावगुणपर्यायाख्यानमेतत् । इह हि मुख्यकालद्रव्यं जीवपुद्गलधर्माधर्माकाशानां पर्यायपरिणतिहेतुत्वात् परिवर्तनलिंगमित्युक्तम् । अथ धर्माधर्माकाशकालानां स्वजातीयविजातीयबंधसम्बन्धाभावात् विभावगुणपर्यायान भवंति, अपि तु स्वभावगुणपर्याया भवन्तीत्यर्थः । ते गुणपर्यायाः पूर्वं प्रतिपादिताः, अत एवात्र संक्षेपत: सूचिता इति। विगत गाथाओं में कालद्रव्य की चर्चा करने के उपरान्त अब इस गाथा में उक्त चर्चा का उपसंहार करते हुए यह बताते हैं कि अचेतन अमूर्तिक धर्मादि चार द्रव्यों की मात्र स्वभावपर्यायें ही होती हैं, विभाव-पर्यायें नहीं। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न (हरिगीत ) जीवादि के परिणमन में यह काल द्रव्य निमित्त है। धर्म आदि चार की निजभाव गुण पर्याय है||३३|| जीवादि सभी द्रव्यों के परिणमन में कालद्रव्य निमित्त है और धर्म, अधर्म, आकाश और काल ह्न इन चार द्रव्यों में स्वभावरूप पर्यायें ही होती हैं। इस गाथा का भाव टीकाकार मनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं त “यह कालादि अमूर्त, अचेतन और शुद्ध द्रव्यों की निजस्वभाव गुणपर्यायों का कथन है। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाशरूप पंचास्तिकाय द्रव्यों की पर्यायरूप परिणति का हेतु (निमित्त) होने से मुख्य (निश्चय) कालद्रव्य का लक्षण वर्तनाहेतृत्व है त ऐसा यहाँ कहा गया है। धर्म, अधर्म, आकाश और काल ह इन चार द्रव्यों को स्वजातीय या विजातीय बंध का संबंध न होने से इनकी विभावपर्यायें नहीं होती हैं; परन्तु स्वभावगुणपर्यायें होती हैं ह ऐसा अर्थ है । उक्त स्वभावगुणपर्यायों का पूर्व में प्रतिपादन हो चुका है; अत: यहाँ संक्षेप में सूचित किया गया है।" इस गाथा में मात्र इतना ही कहा गया है कि धर्म, अधर्म, आकाश और काल ह्न इन द्रव्यों की स्वभावपर्यायें होती हैं: विभावपर्यायें नहीं होतीं: क्योंकि इनमें न तो स्वजातीय बंध होता है और न विजातीय । पंचास्तिकाय के द्रव्यों में जो भी स्वभाव-विभावपर्यायरूप परिणमन होता है, उसमें कालद्रव्य निमित्त होता है ।।३३।।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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