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________________ जीव अधिकार वाक्कायायुरुच्छ्वासनिःश्वासाभिधानैर्दशभिः प्राणैः जीवति जीविष्यति जीवितपूर्वो वा जीवः । संग्रहनयोऽयमुक्तः । निश्चयेन भावप्राणधारणाज्जीवः । व्यवहारेण द्रव्यप्राणधारणाज्जीवः । शुद्धसद्भूतव्यवहारेण केवलज्ञानादिशुद्धगुणानामाधारभूतत्वात्कार्यशुद्धजीवः । अशुद्धसद्भूतव्यवहारेण मतिज्ञानादिविभावगुणानामाधारभूतत्वादशुद्धजीवः । शुद्धनिश्चयेन सहजज्ञानादिपरमस्वभावगुणानामाधारभूतत्वात्कारणशुद्धजीवः । अयं चेतनः । अस्य चेतनगुणाः । अयममूर्तः । अस्यामूर्तगुणाः । अयं शुद्धः । अस्य शुद्धगुणाः । अयमशुद्धः । अस्याशुद्धगुणाः । पर्यायश्च । तथा गलनपूरणस्वभावसनाथः पुद्गलः । श्वेतादिवर्णाधारो मूर्तः । अस्य हि मूर्तगुणाः । अयमचेतनः। अस्याचेतनगुणाः । स्वभावविभावगतिक्रियापरिणतानां जीवपुद्गलानां स्वभावविभावगतिहेतुः धर्मः । स्वभावविभावस्थितिक्रियापरिणतानां तेषां स्थितिहेतुरधर्मः । पंचानामवकाशदानलक्षणमाकाशम् । पंचानां वर्तनाहेतुः कालः । चतुर्णाममूर्तानांशुद्धगुणाः, पर्यायाश्चैतेषां तथाविधाश्च । अवस्था में) जो जीता है, जियेगा और भूतकाल में जीता था; वह जीव हैह्न यह संग्रहनय का कथन है। यह आत्मा निश्चयनय से भावप्राण (चेतना) धारण करने से जीव है और व्यवहारनय से द्रव्यप्राणों के धारण करने से जीव है। शुद्ध (अनुपचरित) सद्भूतव्यवहारनय केवलज्ञानादि शुद्ध गुणों का आधार होने से कार्यशुद्धजीव है और अशुद्ध (उपचरित) सद्भूत व्यवहारनय से मतिज्ञानादि विभाव गुणों का आधार होने के कारण अशुद्धजीव है। शुद्धनिश्चयनय से सहजज्ञानादि परमस्वभावगुणों का आधार होने के कारण कारणशुद्धजीव है। यह (जीव) चेतन है, इसके चेतन गुण है; यह अमूर्त है, इसके अमूर्त गुण है; यह शुद्ध है, इसमें शुद्ध गुण है; यह अशुद्ध है, इसके अशुद्ध गुण है। पर्यायें भी इसीप्रकार हैं। पुद्गल गलन-पूरन स्वभाववाला है। वह पुद्गल श्वेतादि वर्गों का आधारभूत होने से मूर्त है, इसके मूर्त गुण हैं। यह अचेतन है, इसके अचेतन गुण हैं। स्वभावगतिक्रियारूप और विभावगतिक्रियारूप परिणत जीव और पुद्गलों के स्वभावगति और विभावगति का निमित्त कारण धर्मद्रव्य है। स्वभावस्थितिक्रियारूप और विभावस्थितिक्रियारूप परिणत जीव और पुद्गलों को स्वभावस्थिति और विभावस्थिति का निमित्त अधर्म द्रव्य है। आकाश को छोड़कर शेष पाँच प्रकार के द्रव्यों को अवकाशदान (रहने के लिए स्थान देना) जिसका लक्षण है, वह आकाशद्रव्य है। काल को छोड़ शेष पाँच द्रव्यों की वर्तना का निमित्त कालद्रव्य है। जीव को छोड़कर चार अमूर्त द्रव्यों के शुद्ध गुण है और उनकी पर्यायें भी शुद्ध ही हैं।"
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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