SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चयप्रत्याख्यानाधिकार २५९ (शिखरिणी) महानंदानंदो जगति विदितः शाश्वतमय: स सिद्धात्मन्युच्चैर्नियतवसतिर्निर्मलगुणे । अमी विद्वान्सोपि स्मरनिशितशस्त्रैरभिहताः कथं कांक्षंत्येनं बत कलिहतास्ते जडधियः ।।१४६ ।। (रोला) भ्रान्ति नाश से जिनकी मति चैतन्यतत्त्व में। निष्ठित है वे संत निरंतर प्रत्याख्यान में || अन्य मतों में जिनकी निष्ठा वे योगीजन। भ्रमे घोर संसार नहीं वे प्रत्याख्यान में||१४५|| भ्रान्ति के नाश से जिसकी बुद्धि सहज परमानन्दमयी चेतनतत्त्व में निष्ठित है; ऐसे शुद्धचारित्रमूर्ति को निरन्तर प्रत्याख्यान है। परसमय में अर्थात् अन्य दर्शन में जिनकी निष्ठा है; उन योगियों को प्रत्याख्यान नहीं होता हैक्योंकि उन्हें तो बारंबार घोर संसार में परिभ्रमण करना है। __इस छंद में भी यही कहा गया है कि जिनकी बुद्धि अपने भगवान आत्मा में निष्ठित है; वे तो निरंतर प्रत्याख्यान में ही हैं; किन्तु जिनकी बुद्धि अन्य मिथ्यामान्यताओं में निष्ठित है; वे अनंतकाल तक संसारसागर में ही गोते लगाते रहेंगे; क्योंकि उनके प्रत्याख्यान नहीं है।।१४५।। चौथे छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न (रोला) जो शाश्वत आनन्द जगतजन में प्रसिद्ध है। ___ वह रहता है सदा अनूपम सिद्ध पुरुष में।। ऐसी थिति में जड़बुद्धि बुधजन क्यों रे रे। कामबाण से घायल हो उसको ही चाहें ?||१४६|| जो जगत प्रसिद्ध शाश्वत महानन्द है; वह निर्मल गुणवाले सिद्धात्मा में अतिशयरूप से रहता है। ऐसी स्थिति होने पर भी अरेरे! विद्वान लोग भी काम के तीक्ष्ण बाणों से घायल होते हुए भी उसी (कामवासना) की इच्छा क्यों करते हैं ? इस छंद में यह कहा गया है कि जो जगत में प्रसिद्ध अतीन्द्रिय आनंद है, वह तो १. कामवासना को
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy