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________________ जीव अधिकार १७ णियमं मोक्खउवाओ तस्स फलं हवदि परमणिव्वाणं। एदेसिं तिण्हं पि य पत्तेयपरूवणा होई ।।४।। नियमो मोक्षोपायस्तस्य फलं भवति परमनिर्वाणम् । एतेषां त्रयाणामपि च प्रत्येकप्ररूपणा भवति ।।४।। रत्नत्रयस्य भेदकरणलक्षणकथनमिदम् । मोक्षः साक्षादखिलकर्मप्रध्वंसनेनासादितमहानन्दलाभः । पूर्वोक्तनिरुपचाररत्नत्रयपरिणतिस्तस्य महानन्दस्योपायः । अपि चैषां ज्ञानदर्शनचारित्राणां त्रयाणां प्रत्येकप्ररूपणा भवति । कथम्, इदं ज्ञानमिदं दर्शनमिदं चारित्रमित्यनेन विकल्पेन । दर्शनज्ञानचारित्राणां लक्षणं वक्ष्यमाणसूत्रेषु ज्ञातव्यं भवति। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न (हरिगीत ) है नियम मोक्ष उपाय उसका फल परम निर्वाण है। इन ज्ञान-दर्शन-चरणत्रयका भिन्न-भिन्न विधान है||४|| सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप नियम मोक्ष का उपाय है और उसका फल परम निर्वाण की प्राप्ति है। अतः यहाँ इन तीनों का भिन्न-भिन्न निरूपण किया जा रहा है। इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं ह्न “यह कथन रत्नत्रय के भेद करने के संबंध में और उनके लक्षणों के संबंध में है। समस्त कर्मों के नाश से साक्षात् प्राप्त किया जानेवाला महा आनन्द ही मोक्ष है। उक्त महानंदरूप मोक्ष का उपाय पूर्वोक्त निरुपचार रत्नत्रय परिणति है। उक्त रत्नत्रय परिणति के अन्तर्गत आनेवाले ज्ञान, दर्शन, चारित्र का यह ज्ञान है, यह दर्शन है और यह चारित्र ह्न इसप्रकार भिन्न-भिन्न निरूपण होता है, इनके लक्षण आगे आनेवाले गाथा सूत्रों में कहे जायेंगे। अत: इन्हें वहाँ से ही जानना चाहिए।" इसप्रकार इस गाथा में मात्र इतना ही कहा गया है कि समस्त कर्मों के अभाव से उत्पन्न होनेवाली अनन्त अतीन्द्रिय आत्मीक आनन्दवाली दशा ही मोक्ष है और उसकी प्राप्ति का उपाय अर्थात् मोक्षमार्ग निश्चयरत्नत्रयरूप है। रत्नत्रय के भेद सम्यग्दर्शनादि का स्वरूप आगामी गाथाओं में समझाया जायेगा ।।४।। टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इस गाथा के भाव का पोषक एक कलशरूप काव्य लिखते हैं।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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