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________________ १०८ नियमसार वपरिणतेरभावान्न जातजरामरणरोगशोकाश्च । चतुर्गतिजीवानां कुलयोनिविकल्प इह नास्ति इत्युच्यते। तद्यथा ह्न पृथ्वीकायिकजीवानां द्वाविंशतिलक्षकोटिकुलानि, अप्कायिकजीवानां सप्तलक्षकोटिकुलानि, तेजस्कायिकजीवानां त्रिलक्षकोटिकुलानि, वायुकायिकजीवानां सप्तलक्षकोटिकुलानि, वनस्पतिकायिकजीवानाम् अष्टोत्तरविशंतिलक्षकोटिकुलानि, द्वीन्द्रियजीवानां सप्तलक्षकोटिकुलानि, त्रीन्द्रियजीवानाम् अष्टलक्षकोटिकुलानि, चतुरिन्द्रियजीवानां नवलक्षकोटिकुलानि, पंचेन्द्रियेषु जलचराणां सार्द्धद्वादशलक्षकोटिकुलानि, आकाशचरजीवानां द्वादशलक्षकोटिकुलानि, चतुष्पदजीवानां दशलक्षकोटिकुलानि, सरीसृपानां नवलक्षकोटिकुलानि, नारकाणां पंचविंशतिलक्षकोटिकुलानि, मनुष्याणां द्वादशलक्षकोटिकुलानि, देवानां षड्विंशतिलक्षकोटिकुलानि । सर्वाणि सार्द्धसप्तनवत्यग्रशतकोटिलक्षाणि १९७५०००००००००००। पृथ्वीकायिकजीवानां सप्तलक्षयोनिमुखानि, अप्कायिकजीवानां सप्तलक्षयोनिमुखानि, तेजस्कायिकजीवानांसप्तलक्षयोनिमुखानि, वायुकायिकजीवानांसप्तलक्षयोनिमुखानि, नित्यनिगोदिजीवानां सप्तलक्षयोनिमुखानि, चतुर्गतिनिगोदिजीवानांसप्तलक्षयोनिमुखानि, वनस्पति कायिकजीवानां दशलक्षयोनिमुखानि, द्वीन्द्रियजीवानां द्विलक्षयोनिमुखानि, त्रीन्द्रियजीवानां विभावपरिणति का अभाव होने से जन्म, जरा, मरण, रोग और शोक जीव के नहीं हैं। चार गतियों में परिभ्रमण करनेवाले जीवों को होनेवाले कुल और योनि के भेद भी शुद्धजीव के नहीं हैं। कुल व योनि के वे भेद इसप्रकार हैं ह्र पृथ्वीकायिक जीवों के बाईस लाख करोड़ कुल हैं; अपकायिक जीवों के सात लाख करोड़ कुल हैं; तेजकायिक जीवों के तीन लाख करोड़ कुल हैं; वायुकायिक जीवों के सात लाख करोड़ कुल हैं; वनस्पतिकायिक जीवों के अट्ठाईस लाख करोड़ कुल हैं; द्वीन्द्रिय जीवों के सात लाख करोड़ कुल हैं; त्रीन्द्रिय जीवों के आठ लाख करोड़ कुल हैं; चतुरिन्द्रिय जीवों के नौ लाख करोड़ कुल हैं; पंचेन्द्रिय जीवों में जलचर जीवों के साढे बारह लाख करोड़ कुल हैं; खेचर (नभचर) जीवों के बारह लाख करोड़ कुल हैं; चार पैरवाले जीवों के दस लाख करोड़ कुल हैं; सादिक पेट से चलनेवाले जीवों के नौ लाख करोड़ कुल हैं; नारकी जीवों के पच्चीस लाख करोड़ कुल हैं; मनुष्यों के बारह लाख करोड़ कुल और देवों के छब्बीस लाख करोड़ कुल हैं। इसप्रकार कुल मिलाकर एक सौ साढे सत्तानवे लाख करोड़ (१९७५०००,०००,०००,००) कुल है। पृथ्वीकायिक जीवों के सात लाख योनिमुख हैं; अपकायिक जीवों के सात लाख योनिमुख हैं; तेजकायिक जीवों के सात लाख योनिमुख हैं; वायुकायिक जीवों के सात लाख योनिमुख हैं; नित्यनिगोदी जीवों के सात लाख योनिमुख हैं; चतुर्गति (चार गति में परिभ्रमण करनेवाले अर्थात् इतर) निगोदी जीवों के सात लाख योनिमुख हैं; वनस्पतिकायिक
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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