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________________ शुद्धभाव अधिकार द्विलक्षयोनिमुखानि, चतुरिन्द्रियजीवानां द्विलक्षयोनिमुखानि, देवानां चतुर्लक्षयोनिमुखानि, नारकाणां चतुर्लक्षयोनिमुखानि, तिर्यग्जीवानां चतुर्लक्षयोनिमुखानि, मनुष्याणां चतुर्दशलक्षयोनिमुखानि । स्थूलसूक्ष्मैकेन्द्रियसंज्ञ्यसंज्ञिपंचेन्द्रियद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपर्याप्तापर्याप्तकभेदसनाथचतुर्दशजीवस्थानानि । गतीन्द्रियकाययोगवेदकषायज्ञानसंयमदर्शनलेश्याभव्यसम्यक्त्वसंज्ञ्याहारविकल्पलक्षणानि मार्गणास्थानानि । एतानि सर्वाणि च तस्य भगवत: परमात्मनः शुद्धनिश्चयनयबलेन न सन्तीति भगवतां सूत्रकृतामभिप्रायः । तथा चोक्तं श्रीमदमृतचंद्रसूरिभि: ह्र ( मालिनी ) सकलमपि विहायाह्नाय चिच्छक्तिरिक्तं स्फुटतरमवगाह्य स्वं च चिच्छक्तिमात्रम् । इममुपरि चरंतं चारु विश्वस्य साक्षात् १०९ कलयतु परमात्मात्मानमात्मन्यनंतम् ।।१९।। जीवों के दस लाख योनिमुख हैं; द्वीन्द्रिय जीवों के दो लाख योनिमुख हैं; त्रीन्द्रिय जीवों के दो लाख योनिमुख हैं; चतुरिन्द्रिय जीवों के दो लाख योनिमुख हैं; देवों के चार लाख योनिमुख हैं; नारकी जीवों के चार लाख योनिमुख हैं; तिर्यंच जीवों के चार लाख योनिमुख हैं; मनुष्यों के चौदह लाख योनिमुख हैं। इसप्रकार कुल मिलाकर चौरासी लाख (८४०००००) योनिमुख हैं । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त, स्थूल एकेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त, द्वीन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त, असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त, संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त ह्न ऐसे भेदोंवाले चौदह जीवस्थान हैं । गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञित्व और आहार ह्र ऐसे भेदस्वरूप चौदह मार्गणास्थान हैं । यह सब, उन भगवान परमात्मा को शुद्धनिश्चयनय के बल से अर्थात् शुद्ध निश्चयनय से नहीं हैं ह्र ऐसा भगवान सूत्रकर्ता श्रीमद् भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव का अभिप्राय है । " यद्यपि इस गाथा में मात्र इतना ही कहा गया है कि इस भगवान आत्मा के जन्म, जरा, मरण, शोक, रोग, कुल, योनि, जीवस्थान, मार्गणास्थान और चतुर्गति परिभ्रमण नहीं है; तथापि टीका में जीवस्थान और मार्गणास्थान के भेदों को भी नाम सहित गिना दिया है। न केवल इतना ही बल्कि चौरासी लाख योनियाँ और एक सौ साढे सत्तानवे लाख करोड़ कुलों को भी विस्तार से स्पष्ट किया है ।। ४२ ।। १. समयसार : आत्मख्याति, छन्द ३५
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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