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________________ अपनी खोज ८७ इज्जतवाले थे न, इज्जत जाती दिखी तो बिना समझ में आये ही कह दिया, पर बालक तो इज्जतवाला नहीं है न? । ____ अत: वह माँ के मिले बिना कहनेवाला नहीं है; क्योंकि उसे इज्जत नहीं, माँ चाहिए। जिन्हें आत्मा से अधिक इज्जत प्यारी है, उन्हें इज्जत ही मिलती है, आत्मा नहीं। ___ जब बार-बार बालक ना कहता रहा तो पुलिसवाला झल्लाकर बोला- "मैं धूप में क्यों खड़ा रहूँ, माँ तो तुझे ही खोजनी है। अत: मैं वहाँ छाया में बैठा हूँ, तू सभी महिलाओं को देख; जब माँ मिल जावे, तब मुझे बता देना।" __ ऐसा कहकर पुलिसवाला दूर छाया में जा बैठा। बालक ने भी राहत की सांस ली; क्योंकि पुलिसवाला कुछ सहयोग तो कर ही नहीं रहा था; व्यर्थ ही टोका-टोकी कर ध्यान को भंग अवश्य कर रहा था। कम से कम अब उसके चले जाने पर बालक पूरी शक्ति से, स्वतंत्रता से माँ को खोज तो सकता है। इसीप्रकार जब साधक आत्मा की खोज में गहराई से तत्पर होता है, तब उसे अनावश्यक टोका-टोकी या चर्चा-वार्ता पसन्द नहीं होती; क्योंकि वह उसके ध्यान को भंग करती है। उस बालक को अपनी माँ की खोज की जैसी तड़प है, आत्मा की खोज की वैसी तड़प हमें भी जगे तो आत्मा मिले बिना नहीं रहे। वह बालक अच्छी तरह जानता है कि यदि सायं तक माँ नहीं मिली तो क्या होगा? घनी अंधेरी रात उसे पुलिस चौकी की काली कोठरी में अकेले ही बितानी होगी और न मालूम क्या-क्या बीतेगी उस पर? बात मात्र इतनी ही नहीं है । यदि माँ मिली ही नहीं तो सारा जीवन भीख मांगकर गुजारना पड़ सकता है । इसका ख्याल आते ही वह काँप उठता है, सब-कुछ भूलकर अपनी माँ की खोज में संलग्न हो जाता है।
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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