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________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन क्या उस बालक के समान हमें भी यह कल्पना है कि यदि जीवन की संध्या तक भगवान आत्मा नहीं मिला तो चार गति और चौरासी लाख योनियों के घने अंधकार में अनन्त काल तक भटकना होगा, अनन्त दुःख भोगने होंगे। यदि हमें इसकी कल्पना होती तो हम यह बहुमूल्य मानवजीवन यों ही विषय कषाय में बर्बाद नहीं कर रहे होते । ८८ उस बालक से यदि कोई कहे कि बहुत देर हो गई धूप में खड़ेखड़े; जरा इधर आओ, छाया में बैठ जाओ; कुछ खाओ-पिओ, खेलोकूदो, मन बहलाओ; फिर खोज लेना अपनी माँ को, क्या जल्दी है अभी अभी तो बहुत दिन बाकी है। तो क्या वह बालक उसकी बात सुनेगा, शान्ति से छाया में बैठेगा, इच्छित वस्तु प्रेम से खायेगा, खेलेगा - कूदेगा, मन बहलायेगा? यदि नहीं तो फिर हम और आप भी यह सब कैसे कर सकते हैं, पर कर रहे हैं; - इससे यही प्रतीत होता है कि हमें आत्मा की प्राप्ति की वैसी तड़प नहीं है, जैसी उस बालक को अपनी माँ की खोज की है। इसलिए मैं कहता हूँ कि आत्मा की प्राप्ति के लिए जैसा और जितना पुरुषार्थ चाहिए, वह नहीं हो रहा है- यही कारण है कि हमें भगवान आत्मा की प्राप्ति नहीं हो रही है। यह बात भी नहीं है कि वह बालक भूखा ही रहेगा; खायेगा, वह भी खायेगा, पर उसे खाने में कोई रस नहीं होगा। धूप बर्दाश्त न होने पर थोड़े समय को छाया में भी बैठ सकता है, पर ध्यान उसका माँ की खोज में ही रहेगा। खेलने-कूदने और मनोरंजन का तो कोई प्रश्न ही नहीं है । इसीप्रकार आत्मा का खोजी भी भूखा तो नहीं रहता, पर खानेपीने में ही जीवन की सार्थकता उसे भासित नहीं होती । यद्यपि वह स्वास्थ्य के अनुरूप ही भोजन करेगा, पर अभक्ष्य भक्षण करने का तो प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता । कमजोरी के कारण वह अनेक सुविधाओं
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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