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________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन चाहिए कि यह बालक मेरा है । यदि कारणवश माँ भी झूठ-मूठ कह दे कि हाँ यह बालक मेरा ही है । पर उससे वह बालक उसका हो तो नहीं जायेगा। ___ आप कह सकते हैं कि वह महिला भी ऐसा क्यों कहेगी? पर मैं कहता हूँ- कह सकती है, बाँझ हो तो बालक के लोभ में कह सकती है और पुलिसवाले तो किसी से भी कुछ भी कहला सकते हैं। क्या आप यह नहीं जानते? पर बात यह है कि इतने मात्र से माँ को बालक और बालक को अपनी माँ तो नहीं मिल जावेगी। इसीप्रकार गुरु बार-बार समझायें और समझ में न आने पर हमें भला-बुरा कहने लगें तो हम भय से, इज्जत जाने के भय से कह सकते हैं कि हाँसमझ में आ गया, पर इतना कहने मात्र से तो कार्य चलनेवाला नहीं है। इज्जतवाले सेठ ने गुरुजी से पूछा- "भगवान ! आत्मा कैसा है और कैसे प्राप्त होता है?" गुरुजी ने पाँच मिनट समझाया और पूछा"आया समझ में?" सेठ ने विनयपूर्वक उत्तर दिया- "नहीं गुरुजी" गुरुजी ने पाँच मिनट और समझाया और फिर पूछा"अब आया?" 'नहीं' उत्तर मिलने पर व्याकुलता से गुरुजी फिर समझाने लगे, उदाहरण देकर समझाया और फिर पूछा "अब तो आया या नहीं?" 'नहीं' उत्तर मिलने पर झल्लाकर बोले"माथे में कुछ है भी या गोबर भरा है?" घबराकर सेठजी बोले-"अब समझ में आ गया"
SR No.009460
Book TitleNamokar Mahamantra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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