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________________ 172 प्रकरण छठवाँ निमित्त - देव जिनेश्वर गुरु यति, अरु जिन आगमसार, इहि निमित्त” जीव सब, पावत हैं भवपार। उपादान - यह निमित्त इह जीव को, मिल्यो अनन्ती बार, उपादान पलट्यो नहीं, तौ भटक्यो संसार। निमित्त - कै केवली कै साधु कै, निकट भव्य जो होय, सो क्षायिक सम्यक् लहै, यह निमित्त बल जोय। उपादान - केवली अरु मुनिराज के, पास रहैं बहु लोय; ___ पैजाको सुलट्यो धनी, क्षायिक ताको होय। - इससे समझ में आता है कि निमित्त तो जीव को पूर्व में अनन्त बार मिले हैं, किन्तु अपने क्षणिक उपादानकारण के बिना वह मोक्षमार्ग प्राप्त नहीं कर सका और इसलिए संसार-वन में भटक रहा है। प्रश्न 32 - निमित्त भले ही कुछ न करे, किन्तु निमित्त के बिना तो उपादान में कार्य नहीं होता? उत्तर - (1) 'निमित्त बिना... कार्य नहीं होता' - यह व्यवहारनय का कथन है। उसका अर्थ यह है कि - 'ऐसा नहीं है, किन्तु निमित्त का ज्ञान कराने के लिए वैसा कहा जाता है, क्योंकि प्रति समय के उत्पाद (कार्य) के समय उचित बहिरङ्ग साधनों की (निमित्तों की) सन्निधि अर्थात् उपस्थिति-निकटता होती ही है। उसका आधार यह है कि - ....जो उचित बहिरङ्ग साधनों की सन्निधि के सद्भाव में अनेक प्रकार की अनेक अवस्थाएँ करता है... (प्रवचनसार, गाथा 95 की टीका)
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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