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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 171 उदय, सम्यग्ज्ञानी का उपदेश आदि निमित्तों के बिना वास्तव में मोक्षमार्ग प्रगट होता है? उत्तर - (1) हाँ, क्योंकि प्रत्येक द्रव्य के द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव अपनेरूप से हैं और पररूप से नहीं हैं; इसलिए एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य की आवश्यकता होती ही नहीं। जहाँ निश्चयकारण । उपादानकारण होता है, वहाँ व्यवहारकारण / निमित्तकारण होता ही है। (2) जीव निज शुद्ध ज्ञाता-दृष्टास्वभाव की रुचि और उसमें लीनतारूप पुरुषार्थ न करे, तब तक किसी पदार्थ पर निमित्तपने का आरोप नहीं आता। जब जीव अपने में धर्म अवस्था प्रगट करे, तब उसके लिए उचित (अनुकूल) बाह्य पदार्थों पर निमित्तपने का आरोप आता है। ___ (3) निश्चयनय से तो निमित्त के बिना उपादान में स्व से ही कार्य होता है, किन्तु उस काल कैसे निमित्त होते हैं, उसका ज्ञान कराने के लिए 'निमित्त के बिना कार्य नहीं होता' - ऐसा व्यवहारनय का कथन होता है। (4) जिनमार्ग में कहीं तो निश्चयनय की मुख्यतासहित व्याख्यान है; उसे तो 'सत्यार्थ ऐसा ही है' - ऐसा जानना चाहिए; तथा कहीं व्यवहारनय की मुख्यतासहित व्याख्यान है, उसे ऐसा नहीं है, किन्तु निमित्तादि की अपेक्षा से यह उपचार किया है - ऐसा जानना चाहिए... (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 251) (5) इस सम्बन्ध में श्री भगवतीदासजी ने 'ब्रह्मविलास' पृष्ठ 233 पर निमित्त-उपादान के संवादरूप में कहा है कि -
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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