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________________ ४४ गुणस्थान- प्रकरण - समाधान – इसलिए नहीं कीं, कि अपूर्वकरणगुणस्थान के प्रथम समय से लेकर जब तक निद्रा और प्रचला, इन दो प्रकृतियों का बंध व्युच्छिन्न नहीं हो जाता है, तब तक अपूर्वकरणगुणस्थानवर्ती संयतों का मरण नहीं होता है। इसीप्रकार शेष तीन उपशामकों के एक समय की प्ररूपणा नाना जीवों का आश्रय करके करना चाहिए । विशेष बात यह है कि अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानवर्ती उपशामक जीवों के एक समय की प्ररूपणा उपशमश्रेणी चढ़ते हुए और उतरते हुए जीवों को आश्रय करके दोनों प्रकारों से करना चाहिए । किन्तु उपशान्तकषाय उपशामक के एक समय की प्ररूपणा चढ़ते हुए जीवों को ही आश्रय करके करना चाहिए । सूत्र - चारों उपशामकों का उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥२३॥ वह इसप्रकार है- सात आठ से लेकर चौवन तक अप्रमत्तसंयत जीव एक साथ अपूर्वकरण गुणस्थानी उपशामक हुए। जब तक वे अनिवृत्तिकरण गुणस्थान को नहीं प्राप्त होते हैं, तब तक अन्य अन्य भी अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरण गुणस्थान को प्राप्त कराना चाहिए। इसी प्रकार से उपशमश्रेणी से उतरनेवाले अनिवृत्तिकरण गुणस्थानी उपशामक भी अपूर्वकरण गुणस्थान को प्राप्त कराना चाहिए । इसप्रकार चढ़ते और उतरते हुए जीवों से अशून्य (परिपूर्ण) होकर अपूर्वकरण गुणस्थान उसके योग्य उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल पूरा होने तक रहता है। इसके पश्चात् निश्चय से विरह (अन्तराल) हो जाता है। इसीप्रकार से तीनों ही उपशामकों के उत्कृष्ट काल की प्ररूपणा करना चाहिए। विशेष बात यह है कि उपशान्तकषाय उपशामक के उत्कृष्ट काल 23 षट्खण्डागम सूत्र - २३, २४, २५ को कहने पर एक उपशान्तकषाय जीव चढ़ करके जब तक नहीं उतरता है, तब तक अन्य अन्य सूक्ष्मसाम्परायिक संयत उपशान्तकषाय गुणस्थान को चढ़ाना चाहिए। ४५ इसप्रकार से पुनः पुनः संख्यात वार जीवों को चढ़ाकर उपशान्तकाल उसके योग्य अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए। सूत्र - एक जीव की अपेक्षा चारों उपशामकों का जघन्यकाल एक समय है ॥ २४ ॥ वह इसप्रकार है - एक अनिवृत्तिकरण उपशामक जीव एक समयमात्र जीवन शेष रहने पर अपूर्वकरण उपशामक हुआ, एक समय दिखा और द्वितीय समय में मरण को प्राप्त हुआ, तथा उत्तम जाति का अनुत्तरविमानवासी देव हो गया। इसीप्रकार शेष तीनों उपशामकों के एक समय की प्ररूपणा करना चाहिए। विशेष बात यह है कि अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानी उपशामकों के चढ़ने और उतरने के विधान की अपेक्षा दोनों प्रकारों से तथा आरोहण का आश्रय करके उपशान्तकषाय उपशामक की एक प्रकार से एक समय की प्ररूपणा करना चाहिए। सूत्र एक जीव की अपेक्षा चारों उपशामकों का उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २५ ॥ वह इसप्रकार है - एक अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरण गुणस्थानी उपशामक हुआ। वहाँ पर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त रहकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान को प्राप्त हुआ । इसीप्रकार से तीनों उपशामकों के एक समय की प्ररूपणा कहना चाहिए ।
SR No.009451
Book TitleGunsthan Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Shastri, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2014
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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