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________________ ६-७ प्रमत्ताप्रमत्त गुणस्थान सूत्र प्रमत्त और अप्रमत्तसंयत कितने काल तक होते हैं? नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल होते हैं । १९ ॥ चूंकि तीनों ही कालों में प्रमत्त और अप्रमत्तसंयतों से विरहित एक भी समय नहीं है, इसलिए वे सर्वकाल होते हैं। सूत्र - एक जीव की अपेक्षा प्रमत्त और अप्रमत्तसंयत का जघन्य काल एक समय है ॥२०॥ वह इस प्रकार है - पहले प्रमत्तसंयत का एक समय कहते हैं। एक अप्रमत्तसंयत जीव, अप्रमत्तकाल क्षीण हो जाने पर तथा एक समयमात्र जीवित (जीवन) शेष रहने पर प्रमत्तसंयत हो गया । प्रमत्तगुणस्थान के साथ एक समय दिखा और दूसरे समय में मरकर देव उत्पन्न हो गया । तब प्रमादविशिष्ट संयम नष्ट हो गया। इसप्रकार से प्रमत्तसंयत के एक समय की प्ररूपणा हुई। अब अप्रमत्तसंयत के एक समय की प्ररूपणा करते हैं - एक प्रमत्तसंयत जीव प्रमत्तकाल के क्षीण हो जाने पर तथा एक समयमात्र जीवन के शेष रह जाने पर अप्रमत्तसंयत हो गया। तब अप्रमत्तगुणस्थान के साथ एक समय दिखा और दूसरे समय में मरकर देव हो गया । पुनः अप्रमत्तगुणस्थान नष्ट हो गया । अथवा उपशमश्रेणी से उतरता हुआ अपूर्वकरणसंयत एक समयमात्र जीवन के शेष रहने पर अप्रमत्त हुआ और द्वितीय समय में मरकर देवों में उत्पन्न हो गया। इस तरह दोनों प्रकारों से अप्रमत्तसंयत एक समय की प्ररूपणा की गई। 22 षट्खण्डागम सूत्र १९, २०, २१, २२ सूत्र प्रमत्त और अप्रमत्तसंयत का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २१ ॥ ४३ पहले प्रमत्तसंयत का उत्कृष्ट काल कहते हैं - एक अप्रमत्तसंयत, प्रमत्तसंयतपर्याय से परिणत होकर और सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कालप्रमाण रह करके मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। इसप्रकार प्रमत्तसंयत के उत्कृष्ट काल की प्ररूपणा हुई। अब अप्रमत्तसंयत का उत्कृष्ट काल कहते हैं - एक प्रमत्तसंयतजीव, अप्रमत्तसंयत होकर, वहाँ पर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल तक रह करके प्रमत्तसंयत जीव हो गया। यह अप्रमत्तसंयत के उत्कृष्ट काल की प्ररूपणा है। ८ से ११ चारों उपशामक गुणस्थान सूत्र - चारों उपशमक जीव कितने काल तक होते हैं? जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय होते हैं ॥ २२ ॥ वह इसप्रकार है- उपशमश्रेणी से उतरनेवाले दो, अथवा तीन अनिवृत्तिकरण उपशामक जीव एक समयमात्र जीवन के शेष रहने पर अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती उपशामक हुए। तब एक समयमात्र अपूर्वकरण गुणस्थान के साथ दिखे । पुनः द्वितीय संयम में मरे और देव हो गये । इसप्रकार अपूर्वकरण उपशामक के एक समय की प्ररूपणा की । ४५. शंका - अप्रमत्तसंयत को अपूर्वकरण गुणस्थान में ले जा करके और द्वितीय समय में मरण कराके अपूर्वकरण गुणस्थान के एक समय की प्ररूपणा क्यों नहीं की?
SR No.009451
Book TitleGunsthan Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Shastri, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2014
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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