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________________ गुणस्थान-प्रकरण १. अतीतकाल में एक जीव के सब से कम भावपरिवर्तन के बार हैं। २. भवपरिवर्तन के बार भावपरिवर्तन के बारों से अनन्तगुणे हैं। ३. कालपरिवर्तन के बार भवपरिवर्तन के बारों से अनन्तगुणे हैं। ४. क्षेत्रपरिवर्तन के बार कालपरिवर्तन के बारों से अनन्तगुणे हैं। ५. पुद्गलपरिवर्तन के बार क्षेत्रपरिवर्तन के बारों से अनन्तगुणे हैं। १. पुद्गलपरिवर्तन का काल सबसे कम है। २.क्षेत्रपरिवर्तन का काल पुद्गलपरिवर्तन के काल से अनन्तगुणा है। ३. कालपरिवर्तन का काल क्षेत्रपरिवर्तन के काल से अनन्तगुणा है। ४. भवपरिवर्तन का काल कालपरिवर्तन के काल से अनन्तगुणा है। ५. भावपरिवर्तन का काल भवपरिवर्तन के काल से अनन्तगुणा हैं। (इन परिवर्तनों की) विशेष जानकारी के लिये देखो सर्वार्थसिद्धि अध्याय २, १०; व गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५६० टीका) इन ऊपर बतलाये गये पाँचों परिवर्तनों में से यहाँ पर पुद्गलपरिवर्तन से प्रयोजन है। २०. शंका - कर्म और नोकर्म के भेद से पुद्गलपरिवर्तन दो प्रकार का है, उनमें से यहाँ पर किससे प्रयोजन है? समाधान - यहाँ दोनों ही पुद्गलपरिवर्तनों से प्रयोजन है; क्योंकि, दोनों के काल में भेद नहीं है। २१. शंका - यह भी कैसे जाना जाता है? समाधान - पुद्गलपरिवर्तनकाल के अल्पबहुत्व बताते समय दोनों ही पुद्गलपरिवर्तनों को इकट्ठा करके काल का अल्पबहुत्वविधान किया गया है। इससे जाना जाता है कि दोनों पुद्गलपरिवर्तनों के काल में भेद नहीं हैं। इस पुद्गलपरिवर्तनकाल का कुछ कम अर्धभाग सादि-सान्त मिथ्यात्व का काल होता है। २२. शंका - सादि-सान्त मिथ्यात्व का काल कुछ कम अर्द्धपुद्गल-परिवर्तन कैसे होता है? षट्खण्डागम सूत्र -४ समाधान - एक अनादि मिथ्यादृष्टि अपरीतसंसारी (जिसका संसार बहुत शेष हैं ऐसा) जीव, अधःप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण - इसप्रकार इन तीनों ही करणों को करके सम्यक्त्व ग्रहण के प्रथम समय में ही सम्यक्त्वगुण के द्वारा पूर्ववर्ती अपरीत संसारीपना हटाकर व परीतसंसारी हो करके अधिक से अधिक पुद्गलपरिवर्तन के आधे काल प्रमाण ही संसार में ठहरता है। ___ तथा, सादि-सान्त मिथ्यात्व का काल कम से कम अन्तर्मुहूर्तमात्र है। किन्तु यहाँ पर जघन्यकाल से प्रयोजन नहीं है, क्योंकि, उत्कृष्ट काल का अधिकार है। सम्यक्त्व के ग्रहण करन के प्रथम समय में ही मिथ्यात्व पर्याय नष्ट हो जाती है। २३. शंका - सम्यक्त्व की उत्पत्ति और मिथ्यात्व का विनाश इन दोनों विभिन्न कार्यों का एक समय कैसे हो सकता है? ___ समाधान - नहीं; क्योंकि, जैसे एक ही समय में पिण्डरूप आकार से विनष्ट हुआ और घटरूप आकार से उत्पन्न हुआ मृतिका रूप द्रव्य पाया जाता है; उसीप्रकार कोई जीव सबसे कम अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उपशमसम्यक्त्व के काल में रहकर मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। इसलिए मिथ्यात्व से वह आदि सहित उत्पन्न हुआ और सम्यक्त्वपर्याय से विनष्ट हुआ। तत्पश्चात् मिथ्यात्वपर्याय से कुछ कम अर्द्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण संसार में परिभ्रमण कर, अन्तिम भव के ग्रहण करने पर मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। (१) पुनः अन्तर्मुहर्तकाल संसार के अवशेष रह जाने पर तीनों ही करणों को करके प्रथमोपशमसम्यक्त्व को प्राप्त हुआ। (२) पुनः वेदकसम्यग्दृष्टि हुआ। (३) पुनः अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा अनन्तानुबंधी कषाय का विसंयोजन करके। 14
SR No.009451
Book TitleGunsthan Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Shastri, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2014
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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