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________________ अनित्यभावना : एक अनुशीलन संयोग क्षणभंगुर सभी पर आतमा ध्रुवधाम है । पर्याय लयधर्मा परन्तु द्रव्य शाश्वत धाम है ॥ इस सत्य को पहिचानना ही भावना का सार है । ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥ प्रत्येक वस्तु स्वभाव से ही नित्यानित्यात्मक है। नित्यानित्यात्मक वस्तु का असंयोगी द्रव्यांश नित्य एवं संयोगी पर्यायांश अनित्य होता है। अनित्यभावना में संयोगी पर्यायांश के सम्बन्ध में ही चिन्तन किया जाता है। पर्यायों के सर्वाङ्गस्वरूप पर विवेचनात्मक चिन्तन या विश्लेषणात्मक विचार करना अनित्यभावना नहीं है; अपितु पर्यायों की अस्थिरता, क्षणभंगुरता का वैराग्यपरक चिन्तन ही अनित्यभावना का मुख्य अभीष्ट है; क्योंकि आत्महित के लिएसंयोगी पर्यायों पर दृष्टि केन्द्रित करना उपयोगी नहीं; अपितु उन पर से दृष्टि हटाना आवश्यक है, दृष्टि को पर्यायों पर से हटाकर स्वभावसन्मुख करना आवश्यक है। ममत्व पर और पर्यायों से पृथक् द्रव्यस्वभाव का परिज्ञान न होने से अनादिकाल से इस आत्मा ने पर और पर्यायों में ही एकत्व स्थापित कर रखा है, कर रखा है, उन्हीं को सर्वस्व मान रखा है, उन्हीं पर दृष्टि केन्द्रित कर रखी है; परिणामस्वरूप अनन्तदुःखी है। दुःख दूर करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहने पर भी दुःख दूर नहीं होते; क्योंकि इसका पुरुषार्थ ही उल्टी दिशा में गतिशील रहता है। जिन संयीगों या पर्यायों में इसने अपनत्व और ममत्व स्थापित कर रखा है, उन्हें यह स्थाई रखना चाहता है; उसी दिशा में सतत प्रयत्नशील भी रहता
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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