SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहभावना : एक अनुशीलन दुखमयी पर्याय क्षणभंगुर सदा कैसे रहे। अमर है ध्रुव आतमा. वह मृत्यु को कैसे वरे ॥ धुवधाम से जो विमुख वह पर्याय ही संसार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥३॥ यह दुःखमयी पर्याय क्षणभंगुर है; अतः सदा कैसे रह सकती है और ध्रुवस्वभावी अमर आत्मा मृत्यु का वरण कैसे कर सकता है? न तो यह दुःखमय पर्याय ही सदा रहनेवाली है और न अमर आत्मा कभी मरनेवाला ही है। ध्रुवधाम आत्मा से विमुख पर्याय ही वस्तुतः संसार है और ध्रुवधाम आत्मा की आराधना ही आराधना का सार है। संयोग क्षणभंगुर सभी पर आतमा ध्रुवधाम है। पर्याय लयधर्मा परन्तु द्रव्य शाश्वत धाम है ॥ इस सत्य को पहिचानना ही भावना का सार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥४॥ संयोग क्षणभंगुर है और आत्मा त्रिकाली ध्रुवधाम है; पर्याय नाशवान है और आत्मा शाश्वत रहनेवाला है। इस सत्य को पहिचान लेना ही अनित्यभावना का सार है और त्रिकाली ध्रुवधाम निज भगवान आत्मा की आराधना ही वास्तविक आराधना है, आराधना का सार है। भवताप का अभाव भवताप का अभाव तो स्वयं के आत्मा के दर्शन से होता है। दूसरों के दर्शन से आज तक कोई भवमुक्त नहीं हुआ और न कभी होगा। भवतापहारी तो पर और पर्याय से भिन्न निज परमात्मतत्त्व ही है। उसके दर्शन का नाम ही सम्यग्दर्शन है, उसके परिज्ञान का नाम ही सम्यग्ज्ञान है और उसका ध्यान ही सम्यक् चारित्र है। अतः उसका जानना, मानना और ध्यान करना ही भव का अभाव करने वाला है। - आप कुछ भी कहो, पृष्ठ १४
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy