SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनित्यभावना भोर की स्वर्णिम छटा सम क्षणिक सब संयोग हैं। पद्मपत्रों पर पड़े जलबिन्दु सम सब भोग हैं। सान्ध्य दिनकर लालिमा सम लालिमा है भाल की। सब पर पड़ी मनहूस छाया विकट काल कराल की ॥१॥ सम्पूर्ण संयोग सूर्योदयकालीन स्वर्णिम छटा के समान क्षणभंगुर हैं। इसीप्रकार पुण्योदय से प्राप्त भोग भी कमल के पत्तों पर पड़े हुए जलबिन्दुओं के समान क्षणभंगुर ही हैं। भाग्यशाली ललाट की लालिमा भी सायंकालीन सूर्य की लालिमा के समान अल्पकाल में ही कालिमा में बदल जानेवाली है; क्योंकि सभी संयोगों पर, भोगों पर, पर्यायों पर विकराल काल की विकट मनहूस छाया पड़ी हुई है। अंजुली-जल सम जवानी क्षीण होती जा रही। प्रत्येक पल जर्जर जरा नजदीक आती जा रही ॥ काल की काली घटा प्रत्येक क्षण मँडरा रही। किन्तु पल-पल विषय-तृष्णा तरुण होती जा रही ॥२॥ यह उन्मत्त यौवन अंजुली के जल के समान प्रतिपल क्षीण होता जा रहा है और देह को जर्जर कर देनेवाला बुढ़ापा निरन्तर नजदीक आता जा रहा है। मृत्यु की काली घटाएं प्रत्येक क्षण शिर पर मँडरा रही है, फिर भी पंचेन्द्रिय विषयों की तृष्णा निरन्तर बढ़ती जा रही है, जवान होती जा रही है।
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy