SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरी भावना इन कार्यों में शेष समय और शक्ति को निश्शेष करना मुझे रंचमात्र भी अभीष्ट नहीं है। __ पूज्य गुरुदेवश्री की साधनाभूमि तीर्थराज सोनगढ़ के प्रति गहन अनुराग भी मेरी एक ऐसी कमजोरी है कि वर्तमान सन्दर्भ में उसकी चर्चा भी मुझे आन्दोलित कर देती है। अत: वहाँ घटनेवाले वर्तमान घटनाचक्र से भी मैं अपने को पूर्णतः अलग रखना चाहता हूँ। इसमें भी आप सबका सहयोग अपेक्षित है। लेखन के भी सन्दर्भ में मैं अपनी भावना स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। आध्यात्मिक विषयों के अतिरिक्त विषयों पर लिखना भी मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है। अतः पत्र-पत्रिकाओं, स्मारिकाओं आदि के लिए लिखना भी मुझसे अब संभव न होगा; क्योंकि अब मैं अपनी सम्पूर्ण शक्ति उन आध्यात्मिक विषयों के लेखन में लगाना चाहता हूँ, जो मेरे चिन्तित विषय हैं, जिन पर मैंने वर्षों से अनुशीलन किया है,चिन्तन-मनन किया है; मैं चाहता हूँ कि वे विषय समय रहते लिपिबद्ध हो जावें। ___ चाहे परिस्थितिवश ही सही, पर मेरे हित की दृष्टि से बारह भावनाओं का यह अनुशीलन एकदम सही समय पर हुआ है; क्योंकि इस अनुशीलन ने मुझे सही समय पर जागृत कर दिया है। मुझे विश्वास है कि इस अनुशीलन को जो भी व्यक्ति पवित्र हृदय से पढ़ेगा, मनन करेगा, चिन्तन करेगा, इसमें व्यक्त रहस्य को गहराई से अनुभव करेगा; उसकी भी जीवनधारा परिवर्तित हुए बिना नहीं रहेगी। इस अनुशीलन में अद्यावधि उपलब्ध बारह भावना साहित्य में व्यक्त सभी बिन्दुओं पर गंभीर विचार किया गया है, सभी दृष्टिकोणों की सुसंगत समीक्षा की गई है। प्रत्येक दृष्टिकोण को तर्क की कसौटी पर कसा गया है, उसकी तर्क-संगत व्याख्या की गई है। . प्रथम निबन्ध में बारह भावनाओं का सामूहिक अनुशीलन किया गया है, जिसमें बारह भावनाओं के चिन्तन की आवश्यकता, उपयोगिता, महिमा एवं चिन्तन-प्रक्रिया के क्रमिक विकास आदि बिन्दुओं को स्पर्श किया गया है।
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy