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________________ बारहभावना : एक अनुशीलन तत्पश्चात् बारह निबन्धों के माध्यम से प्रत्येक भावना की विषय-वस्तु एवं चिन्तन-मनन प्रक्रिया को आवश्यक उद्धरणों के साथ सोदाहरण स्पष्ट किया गया है। जहाँ आवश्यकता प्रतीत हुई, वहाँ तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया है। संसारभावना और लोकभावना की चिन्तन-प्रक्रिया में मूलभूत अन्तर क्या हैं? - इसप्रकार की शंकाएँ यथास्थान स्वयं प्रस्तुत कर उनका समुचित समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। ___ इस अनुशीलन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि इसमें बारह भावनाओं की मूल आत्मा आध्यात्मिकता एवं वैराग्यभावना पग-पग पर प्रस्फुटिक हुई है। तर्कसंगत गद्य अनुशीलन में बुद्धिपक्ष की प्रधानता होने से भावात्मक वैराग्यभावना को ठेस पहुँचने की संभावना पग-पग पर बनी रहती है है; तथापि इसमें सर्वत्र यथासंभव सावधानी बरती गई है। __पद्यमय बारह भावनाओं में तो अध्यात्ममय वैराग्यभावना का तरलप्रवाह सर्वत्र दृष्टिगोचर होगा। तरलप्रवाह को बल देने के लिए पुनरुक्तियों का भरपूर प्रयोग हुआ है, पर भावना के प्रकरण में पुनरुक्ति दोष नहीं, गुण माना गया है। __ आचार्य जयसेन लिखते हैं - "भावनाग्रन्थेपुनरुक्तदोषाभावत्वाद्वा।' - भावनाग्रन्थ में पुनरुक्ति को दोष नहीं माना जाता है।" इन पद्यमय बारह भावनाओं को अध्यात्मप्रेमी समाज ने जिस उत्साह से अपनाया है, उसकी मुझे कल्पना भी न थी। २६ जनवरी, १९८५ को प्रकाशित दश हजार प्रतियों का प्रथम संस्करण समाप्त हो गया है और ढाई माह के भीतर ही महावीर जयन्ती के अवसर पर ३ अप्रैल, १९८५ को दश हजार प्रतियों का ही दूसरा संस्करण छपाना पड़ा है। इसीप्रकार अबतक इसके चार हजार से भी अधिक कैसेट भी जन-जन तक पहुँच चुके हैं। कैसेटों के सन्दर्भ में एक बात और भी उल्लेखनीय है कि जनता उनकी एक से अनेक प्रतियाँ स्वयं तैयार कर लेती है। इस प्रकार न जाने वे अबतक कितनी मात्रा में कहाँ-कहाँ पहुँच चुके होंगे - कुछ कहा नहीं जा सकता। १. पंचास्तिकायसंग्रह गाथा ७ को तात्पर्यवृत्ति टीका
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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