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________________ बारहभावना : एक अनुशीलन रहा हूँ; पर इतना अवश्य है कि उनमें पूर्णतः लिप्त भी नहीं हुआ और उस सीमा तक आन्दोलित भी नहीं हुआ कि जिससे मेरी आत्मिक शान्ति और रचनात्मक प्रवृत्तियाँ प्रभावित होतीं। सम्पूर्ण घटनाचक्र से गहराई से जुड़ा हुआ होने पर भी मैं उससे विरक्त और अलिप्त रहने में जितना भी सफल हो सका हूँ, मेरे लिए वह अपने आप में एक अपूर्व उपलब्धि है; क्योंकि इसने मुझमें यह आत्मविश्वास जागृत कर दिया है कि अब में सांसारिक उलझनों से अलिप्त रहने के अपने संकल्प में एक सीमा तक अवश्य सफल हो सकूँगा। ___ भाई! जीवन का लगभग दो-तिहाई भाग तो समाप्त हो ही गया है।आगामी मास में जीवन के बहुमूल्य पचास वर्ष पूरे करने जा रहा हूँ। जीवन के शेष एक-तिहाई भाग को आत्महित और पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा प्राप्त वीतरागी तत्त्व को जन-जन तक पहुँचाने में ही सम्पूर्णतः समर्पित कर देना चाहता हूँ। ___ सद्भाग्य से अब मैं लगभग सभी पारिवारिक उत्तरदायित्वों से मुक्त हो गया हूँ; जो शेष हैं, उनसे भी निवृत्त होने की दिशा में शीघ्रता से बढ़ रहा हूँ। ऐसे सौभाग्यशाली लोग बहुत कम होते हैं, जिन्हें गृहस्थी की कीचड़ में फँस जाने पर भी इस उम्र में इसप्रकार के अवसर उपलब्ध हो जाते हों। मैं इस अद्भुत अपूर्व अनुकूल अवसर को विगत चालीस वर्ष के आगम और अध्यात्म के निरन्तर अभ्यास का ही परिणाम मानता हूँ और इसे सार्थक कर लेने के लिए कृतसंकल्प हूँ। बारह भावनाओं के गहरे अनुशीलन से उत्पन्न विशुद्धि के अवसर पर आत्महित के लिए कृतसंकल्प मैं अपने पाठकों, श्रोताओं, मित्रों एवं परिजनों से हार्दिक अनुरोध करता हूँ कि वे मुझे अपने इस संकल्प की पूर्ति में सहयोग प्रदान करें। उनका सबसे बड़ा सहयोग यही होगा कि वे मुझसे आत्महित संबंधी वार्ता, तत्त्वचर्चा एवं तत्त्वप्रचार संबंधी वार्ता के अतिरिक्त कोई लौकिक या सामाजिक चर्चा न करें; क्योंकि मैं स्वयं के शेष उत्तरदायित्वों को शीघ्र पूर्ण कर लौकिक व्यवहारों से पूर्णतः निवृत्त हो जाना चाहता हूँ। इसीप्रकार धार्मिक कार्यों को छोड़कर शेष सामाजिक कार्यों से भी अपने को अलग ही रखना चाहता हूँ।
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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