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________________ बारहभावना : एक अनुशीलन संवरतत्त्व के विश्लेषण में संवर के सभी कारणों पर विस्तृत प्रकाश डाला जा सकता है, जैसाकि तत्त्वार्थसूत्र आदि ग्रन्थों में किया गया है; पर संवरभावना में उन सबकी विस्तृत चर्चा करना निश्चितरूप से सीमा का उल्लघंन होगा। संवर के कारणों में तीन गुप्ति, पाँच समिति, दश धर्म, बारह भावनाएँ, बाईस परीषहजय एवं पाँच प्रकार का चारित्र सभी आ जाते हैं। सम्यग्दर्शनज्ञान भी संवर के कारण या संवररूप ही हैं। इसप्रकार संवर की चर्चा में सम्पूर्ण मुक्ति का मार्ग ही समाहित हो जाता है; पर क्या संवरभावना में सभी का चिन्तन समाहित है? ___ नहीं, कदापि नहीं; संवरभावना के चिन्तन की अपनी सीमाएँ हैं । यदि ऐसा न माना जाय तो फिर मुक्तिमार्ग सम्बन्धी सम्पूर्ण चिन्तन एक संवरभावना में ही समाहित हो जावेगा। ध्यान रहे संवर के कारणों में गुप्ति, समिति, धर्म आदि के साथ बारह भावनाएँ भी हैं। इसप्रकार तो संवरभावना में ही शेष ग्यारह भावनाएँ भी गर्भित हो जावेंगी, उनका पृथक् अस्तित्व ही संभव न होगा, जो किसी भी स्थिति में उचित नहीं होगा। इसप्रकार यह स्पष्ट है कि संवरभावना के चिन्तन में संवर के कारणों के विस्तार में जाना अभीष्ट नहीं है, उनका संक्षिप्तोल्लेख ही पर्याप्त है। इसीप्रकार की प्रवृत्ति उपलब्ध बारह भावना साहित्य में देखने में भी आती है। संवरभावना की चिन्तनप्रक्रिया में भेदविज्ञान और आत्मानुभूति की मुख्यता है; गुप्ति, समिति आदि भेद-प्रभेदों के विस्तार में जाने की नहीं। जैसा कि निम्नांकित उल्लेखों से स्पष्ट है - "जिन पुण्य-पाप नहीं कीना, आतम अनुभव चित दीना। तिन ही विधि आवत रोके, संवर लहि सुख अवलोके॥ जिन्होंने पुण्य-पापरूप आस्रवभावों को न करके आत्मा के अनुभव में चित्त को लगाया है। उन्होंने ही आते हुए द्रव्यकर्मों को रोक दिया है। इसप्रकार १. पण्डित दौलतरामजी : छहढाला; पंचम ढाल, छन्द १०
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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