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________________ ११८ संवरभावना : एक अनुशीलन यहाँ एक प्रश्न सम्भव है कि आस्रवभावना के निरूपण में आस्रव को दुःखरूप और दुःख का कारण बताया गया था और उसके विरुद्ध आत्मा को सुखरूप और सुख का कारण बताया था; पर यहाँ आस्रव के विरुद्ध संवर को सुखरूप और सुख का कारण बताया जा रहा है। __ आत्मा स्वभाव से ही सुखरूप है और उसके आस्त्रय से सुख की उत्पत्ति होती है; अत: वह सुख का कारण भी है। - आस्रवभावना में यह बताया गया था और यहाँ यह बता रहे हैं कि सुखस्वभावी आत्मा के आश्रय से मोह-रागद्वेष का अभाव होकर जो अनाकुल आनन्द उत्पन्न होता है, वही संवर है; अतः संवर सुखरूप है तथा मोह-राग-द्वेष के अभावरूप सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्ररूप परिणमन ही संवर है। यह दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप परिणमन मोक्षमार्ग होने से सुख का कारण भी है। आस्रवभावना में मोह-राग-द्वेषरूप आस्रवभावों के विरुद्ध, मोह-रागद्वेष परिणामों से भिन्न आत्मस्वभाव की त्रिकाली सुखमयता और सुखकारणता की बात थी और यहाँ संवरभावना में मोह-राग-द्वेषरूप आस्रवभावों के विरुद्ध उनके अभावपूर्वक उत्पन्न होनेवाले वीतरागभावरूप संवर की सुखरूपता और सुखकारणता की बात है। संवर की सुखरूपता सुखकारणता व्यक्त है, मोक्षमार्गरूप है और त्रिकाली आत्मा की सुखरूपता और सुखकारणता शक्तिरूप है। प्रश्न : जब संवरभावना के उपलब्ध चिंतन में अधिकांश चिन्तन संवरतत्त्व और संवरभावना को एक मानकर ही हुआ है तो फिर दोनों को एक ही क्यों न मान लिया जाए? उत्तर : यह ठीक नहीं है; क्योंकि इससे संवरभावना के चिन्तन की विषयवस्तु का क्षेत्र बहुत व्यापक हो जायगा, उसकी सीमा में समग्र मोक्षमार्ग ही समाहित हो जायगा। ध्यान रहे संवरभावना संवर के अनेक कारणों में से मात्र एक कारण है।
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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