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________________ लेने दो, तुम तो प्रतिदिन करते हो। मैंने अपनी जिंदगी में कभी भी भगवान के चरणों में दीपक नहीं जलाया है। बड़ी कृपा होगी, आज का दीपक मुझे जला लेने दो । पुजारी को दया आ गई, पहले तो वह निर्दयी बन रहा था । उसने कहा- ले यह दीपक । बस मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे थोड़ा तेल और माचिस दे देना। बाती नहीं चाहिये । बाती तो मुझे आज मेरे पुण्य के उदय से मिल गई है । पुजारी से दीपक और तेल लेता है और चार बाती बनाकर पुजारी से माचिस लेकर दिया जलाता है। भगवान की आरती उतारता है । आरती उतारते समय ये नहीं कहता है कि भगवन् ! मैं चार दिन से भूखा हूँ, मुझे भोजन मिल जावे। वह कहता है कि, हे भगवन्! जिस प्रकार उस माँ का दिया हुआ वस्त्र, इस अंधेर को दूर कर रहा है, उसी तरह उस माँ के अंदर का अज्ञान अंधकार भी देना | जिसके दिये हुए कपड़े ने सारे मंदिर के अंधकार को दूर कर प्रकाश कर दिया, उसके अंदर के अंधकार को भी दूर कर देना । उसका क्रोध जिस कारण से भी था, वे कारण, वह अंधकार उसके अंदर से हट जावे | दूर करके प्रकाश कर कितना पवित्र परिणाम है, उस भिखारी का कि जिसके हृदय में स्वयं की समस्त इच्छाओं को गौण कर पर के दुःख को दूर करने का परिणाम आया । यही तो श्रीराम भरत से चित्रकूट में कहते हैं कि न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग पुनर्भवम् । कामये क दुःख तप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम् || — अर्थात् मैं न तो राज्य की कामना करता हूँ, न स्वर्ग चाहता हूँ और न पुनर्जन्म; बल्कि मैं तो दुःख से तप्त प्राणियों के दुःखों का नाश करना चाहता हूँ। 70
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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