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________________ बताओ, उत्तम क्षमा के दिन जिस स्त्री ने एकाशन करक, पांछा लगाकर कपड़ा भिखारी के मुँह पर मारा था, क्या वह उत्तम क्षमा की अधिकारिणी है? या वह भिखारी क्षमा का अधिकारी है जिसके मुँह पर कपड़ा मारा था? अपने शत्रु क भी कल्याण की भावना करनेवाला वह भिखारी अपने मारने वाले क प्रति भी कितना भला सोच रहा है? आप हाते तो कहते-भगवन् ! आज दो रोटियाँ मिल जावें अथवा सेठानी का विनाश हो जावे | किन्तु वह कहता है कि भोजन तो अपने कर्मों से मिलेगा। भगवन्! आपकी कृपा से तो अंधकार दूर हो सकता है | उस माँ के हृदय का अंधकार दूर हो जाये | इस उदाहरण से शिक्षा लो कि यदि तुम्हें काई गाली देता है तो तुम यह मत कहना कि भगवन्! मुझ गाली मिली है, इस गाली देनेवाले का विनाश हा जावे | तुम यह कहना कि, हे भगवन्! जिसने मुझे गाली दी है, उसका कल्याण हो जावे | अभिशाप तुम्हें मैं देता हूँ, कल्याण तुम्हारा हा जावे | अभिशाप भी किसी को देना तो क्या देना? यदि तुम्हें अभिशाप देने की आदत ही पड़ गई है तो यह देना- अभिशाप तुम्हें मैं देता हूँ, कल्याण तुम्हारा हो जावे | अभिशाप भी दो तो ऐसा दो कि शत्रु भी सुखी हो जावे | गाली देने वाल का भी कल्याण करने की भावना करो कि, भगवन्! इस गाली देने वाल का भी कल्याण हो जावे | ऐसा परिणाम तुममें आ जावे तो तुम उत्तम क्षमाधर्म के अधिकारी हो। जगत में जो कुछ भी बुरा नजर आता है, वह सब क्रोधादि विकारों का ही परिणाम है । क्रोधी पर ही में भूल देखता है | स्वयं में देखने लगे तो क्रोध आएगा कैस? यही कारण है कि आचार्यों ने क्रोधी को क्रोधान्ध कहा है | क्रोधान्ध व्यक्ति क्या-क्या नहीं कर डालता? सारी दुनिया में (71)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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