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________________ कपड़ा उसके मुख पर मार दो? यदि किसी का उपकार नहीं कर सकत तो उसका अपकार भी मत करो । एक समय की घटना है। एक व्यक्ति पत्थर मार रहा था आम के फल गिराने के लिये | उसी समय बगीचे का माली आ गया और राजा के पास ले गया और कहा कि, हे राजन्! ये आप क बगीचे के फल तोड़ रहा था। राजा कहते हैं-इसे फाँसी पर चढ़ा दो। जब फाँसी दी जाने लगती है तो राजा कहते हैं-तेरी अंतिम इच्छा क्या है? क्योंकि जिस फाँसी पर चढ़ाते हैं, उससे अंतिम इच्छा पूछते हैं | वह कहता है-राजन्! अंतिम इच्छा यह है कि जिस पेड़ का मैं पत्थर मार रहा था परंतु बदले में वह आम दे रहा था, मैं उससे क्षमा माँग आऊँ कि मैं उससे भी गयाबीता हूँ, कि राजा मुझे फाँसी दे रहा है और मैं उसे उसके बदले कुछ भी नहीं दे पा रहा हूँ | मेरे ऊपर कोड़े पड़ रहे हैं, परंतु मैं इसके बदले कुछ भी नहीं दे रहा हूँ | मुझ से महान तो तू (आम का पेड़) है, जिसे मैं पत्थर मारता था और तू आम के फल देता था। इतना सुनते ही वह राजा अपनी भूल मानता है और उसे फाँसी की सजा से मुक्त कर देता है। इधर वह भिखारी कहता है-धन्य है, भगवन् ! आज मेरा पुण्य उदय आया, कम-से-कम एक कपड़ा ता मिल गया | चला गया उस कपड़े का लकर, पहुँच गया तालाब के पास | वह भिखारी कपड़ को धोकर साफ करता है और नसियाँ में आ जाता है। संध्याकाल है | पुजारी से कहता है -पुजारी जी! आप प्रतिदिन संध्या आरती करते हो, आज तुम्हार स्थान पर मैं संध्या कर सकता हूँ? पुजारी कहता है- नहीं, तू भिखारी है। वह कहता है कि आज मेरा अंतिम दिन है और मैं अब जीवित नहीं रह सकूँगा। मेरे प्राण निकल जावेंगे | हे पुजारी! मेरी इच्छा पूरी कर लेने दो | आज की संध्या आरती हमें कर 69)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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