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________________ न हो । तो बुढ़िया बोली-हाँ, महाराज! मैं अभी लाती हूँ | एक घर में पहुँची, बोली मेरा बेटा मर गया है, उसे जिन्दा करने के लिए एक पाव सरसों के दाने दे दीजिए। तो घर वाले बोल-अरे! एक ही पाव क्यों, एक मन ले जावो । अगर सरसों के दानों से तुम्हारा बटा जिन्दा हाता है, तो यह ता बड़ी खुशी की बात है | बुढ़िया बोली-मगर यह तो बताआ तुम्हारे घर कभी कोई मरा तो नहीं? घर वाले बोले-अरे! मेरे घर तो अनेकों लोग मरे | दादा मरे, दादी मरी, पिता मरे माता मरी. और भी कई बच्च मरे । बढ़िया बोली-अरे! तो नहीं चाहिए तुम्हारे घर की सरसों। यों बुढ़िया दूसरे घर गई, तीसरे घर गई, सब जगह से वही जवाब बराबर मिलता गया कि मेरे घर तो अनेकों लोग मर । करीब 20 घर उसने जा-जा कर देख लिया. पर कोई भी घर ऐसा नहीं बचा जिस घर में कभी कोई मरा न हो | इस घटना को देखकर बुढ़िया को ज्ञान जग गया कि अरे! यह तो संसार की रीति है। एक-न-एक दिन सभी का मरण होता है | बस, इतना ज्ञान जगत ही उसका सारा दुःख खत्म हो गया। वह प्रसन्न होकर साधु के पास पहुँची। देखिये, जब तक अज्ञान था तब तक बेचैनी थी कि हाय अब क्या करूँ, पर सही ज्ञान जग गया तो उसकी बेचैनी समाप्त हो गई, उसकी मुद्रा में प्रसन्नता झलक गई। जब साधु ने बुढ़िया को अपने सन्मुख प्रसन्न मुद्रा में देखा तो पूछा-अरी बुढ़िया माँ! क्या तेरा बटा जिन्दा हो गया? बुढ़िया बोली-'हाँ, महाराज! जिन्दा हो गया।' कैसे? 'बस मेरा मरा हुआ ज्ञान अब जिन्दा हो गया। वास्तव में बात यही है कि जितने भी क्लेश होते हैं, सब इस ज्ञान के मरे हुए होने से होते हैं | जहाँ ज्ञान कुम्हला गया, वहाँ दुःख है | जहाँ सत्य ज्ञान जगा, वहाँ क्लेश नहीं होता | इस आत्मा को आवश्यक है कि ज्ञानामृत का पान करे, जिससे (755
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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