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________________ अज्ञानजन्य संताप शांत हो जाय | जितना भी जीव को संताप है, वह सब अज्ञान का फल है | जीव की बरबादी की मूल निशानी यह है कि इसका चित्त किसी इन्द्रिय-विषय में जा रहा है, या अपनी नामवरी को सोचने में जा रहा है | यदि इन्द्रिय-विषयां में मन जा रहा है, तो समझना निरन्तर बरबादी की बात चल रही है, अथवा नामवरी में चित्त जाये, मेरा ऐसा यश फैले, मेरी ऐसी कीर्ति हो, मरे नाम पर धब्बा न लग जाये, लोग मेरा नाम लेते रहें, मेरी बात सबके चित्त में जम जाये, यदि ऐसी धारणा है तो वही कष्ट है | यह तो बरबादी की निशानी है। सो यदि कष्टों से छुटकारा पाना है, तो सम्यग्ज्ञान प्राप्त करो और अपना केवल एक ही लक्ष्य बनाआ कि मुझे तो सिद्ध होना है | अरे कैसा होना है? अभी हो जावोगे? न सही अभी, कभी होऊँ, इसके सिवाय मेरा और कोई दूसरा प्रोग्राम नहीं है | संसार में रुलने से क्या लाभ? कष्ट-ही-कष्ट हैं आपदा-ही-आपदा है। ये जन्म-मरण करके मरना ही है क्या? मरे, जन्में, मरे, जन्मे, यह करना है क्या? या जन्म-मरण की संतति बिलकुल मिट जाये, केवल मैं जैसा स्वयं हूँ, बैसा ही रहूँ, जिससे किसी प्रकार का विकल्प न जगे, शुद्ध ज्ञानानन्द स्वरूप रहे | मेरे को तो देह से, कर्म से, विकल्प से, सबसे छुटकारा पाकर केवल बनना है, सिद्ध होना है। यह बात चाहे 5 भव में हो, चाह 10 भव में हो या अनेक भवों में भी हो, होना यही है। दूसरा कुछ हमको नहीं हाना है। रागभाव सचमुच आग है। ज्ञानामृत का पान कर ही इस राग के संताप को दूर किया जा सकता है। अमृतपान करने से मानव अमर हो जाता है, ऐसा लोक में प्रसिद्ध है, परन्तु ज्ञान का अमृत पान करने स आत्मा अजर-अमर गुण को पा लेता है। सम्यग्ज्ञान के प्रभाव से राग, द्वेष, मोह मिटता है, समताभाव (756)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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