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________________ इष्टवियोग हो गया, तो क्या हो गया? सारी बाहरी बातें हैं | मैं तो ज्ञानस्वरूप हूँ | मेरे में तो मेरी ज्ञानज्योति ही सर्वस्व है। इसके अतिरिक्त तो मेरा कुछ है ही नहीं । जहाँ ज्ञानबल आये, वहाँ घबड़ाहट में अन्तर अवश्य आ जाता है। अधीर पुरुष की, घबड़ाय हुए पुरुष की, विषयसाधन रक्षा न करेंग | अपना ज्ञान ही रक्षा कर सकगा। किसी का पिता गुजर गया हो, पुत्र गुजर गया हो, स्त्री गुजर गई हो, पति गुजर गया हो, बड़ा संकट हो, वह खूब रोता हो तो क्या कोई उसे यों कहता है कि अरे! रोवो नहीं, अभी तुमको हलुवा लाये देते हैं। ऐसा किसी ने कहा क्या? ऐसा कहीं होता क्या? किसी भी विषय-साधन से उसकी घबड़ाहट दूर न होगी। ज्ञानबल बनेगा, तो घबड़ाहट दूर होगी। अरे! यह तो संसार है, यहाँ तो ऐसा होता ही रहता है। यह तो सब क्षण भर का समागम है | हो गया ऐसा, तो क्या हुआ ज्ञानबल बढ़ता है, तो घबड़ाहट दूर होती है। विषय प्रसंगों से घबड़ाहट दूर नहीं होती। एक बुढ़िया का छोटा लड़का था, और उसके वही एक लड़का था। तो आप समझो इस मोही जगत में इस प्रकार के इकलौते बेटे का मरण कितने दुःख की घटना मानी जाती है? तो उस लड़के के मरण हो जाने से वह बुढ़िया बड़ी परेशान होती हुई उस लड़के को अपनी गोदी में लिए हए फिरे । आखिर उसे एक साधु मिला। साध के आगे बच्चा रख दिया। और कहा-महाराज! मैं बड़ी दुःखी हूँ | मरे इस बच्चे को जिला दो, तो मैं आबाद हो जाऊँगी, तो साधु बोला कि अरी बुढ़िया माँ! तू रो मत, तेरा बच्चा अभी जिन्दा हो जायगा, किन्तु तुम्हें एक करना पड़ेगा। बुढ़िया बाली-हाँ-हाँ बोलो, मैं तो सब कुछ कर सकती हूँ | साधु जी बोले-हाँ, देखा तुम कहीं से पाव भर सरसों के दाने ले आवो और ऐसे घर से लावो कि जिस घर में काई मरा (754)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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