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________________ करने के लिये (कुटीर ) कुटिया के पास आये और साँकल खटखटा कर बोले- क्या इतनी जल्दी सो गई? अनेक बार प्रश्न करने पर भी उत्तर नहीं मिलने पर आचार्य चिल्लाकर बोले, क्या उत्तर देना भी पाप है? अबला ने कहा- नहीं, आपने कहा था कि यहाँ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा पर आप स्वयं अपनी प्रतिज्ञा से च्युत हो गये हैं । आचार्य बोले कौन छेड़ता है, हम कोई पाप की बातें थोड़े ही कर रहे हैं। एक बार द्वार खोलो और हम जो धर्मापदेश दें उसे प्रेम से सुनो। — अबला बोली भाड़ में जाये तुम्हारा धर्मोपदेश | हम प्राणनाथ की बातें छोड़कर किसी अन्य की बात नहीं सुनना चाहते | — शुक्राचार्य - प्राणधन ! डरो मत। हम ऐसा वैसा प्रेम नहीं, विशुद्ध प्रेम करना चाहते हैं। अबला - छिः छिः डूबि मरहूँ धर्मव्रतधारी, कैसा धर्मोपदेश, पर स्त्री से प्रेम करते हो और फिर विशुद्ध भी कहते हो । सुन्दरी की बातों से आचार्य लज्जित तो हुए परन्तु उनका मन शान्त होने की बजाय और अधिक चंचल हो गया। उन्होंने बहुत चाहा कि किसी प्रकार कुटीर में प्रवेश किया जाय परन्तु कुटीर का द्वार सुदृढ और बन्द था। उन्होंने छत तोड़कर अन्दर जाने का विचार किया और छत की चार-पाँच लकड़ियाँ हटाकर अन्दर प्रवेश करने का मार्ग कर लिया । मोहमुग्ध शुक्राचार्य जैसे ही नीचे उतरे, उसी समय बिजली चमकी, उसका प्रकाश छत से अन्दर गया, उन्होंने देखा सुन्दरी के स्थान पर जटाजूट धारी महर्षि वेदव्यास बैठे हँस रहे हैं । उनके हाथ में उसी श्लोक का पत्र था जिसे उन्होंने अशुद्ध और व्यर्थ बताया था । "माता स्वस्त्रा दुहित्रा वा माता, बहिन व पुत्री के साथ भी 660
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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