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________________ का है। हा! प्राणनाथ! मुझ अबला को इस भयंकर वन में छोड़कर कहाँ चले गये?" जिस ओर से आवाज आई थी, आचार्य उधर की ओर बढ़ और बाले – “पुत्री! तुम कौन हा! डरो मत! मेरे आश्रम चलो। तुम्हे वहाँ कोई आँख उठाकर भी नहीं दख सकेगा।" अबला ने उत्तर दिया- “खबरदार | मेरे पास मत आना । मैं तरे वाग्जाल में फँसने वाली नहीं हूँ। एकान्त में परपुरुष मात्र से मुझे भय लगता है, क्योंकि संसार के पापी पुरुष जिस मुख से पुत्री कहते हैं उसी मुख से दूसरी बार पत्नी कहने में नहीं हिचकते। " हाय प्राणेश्वर! अब क्या करूँ | इस भयंकर वन में मुझे हिंसक जन्तुओं से भी इतना डर नहीं लग रहा जितना मनुष्य से । हे प्राणनाथ! आओ और मुझे इस विपत्ति स बचाओ ।” आचार्य ने साचा - यह स्त्री डरी हुई है, इस अपने पतिव्रत धर्म का बड़ा ख्याल है | इसे धैर्य बंधाना चाहिये | ऐसा विचार कर आचार्य ने अबला को बहुत प्रकार से आश्वासन दिये, तब वह यह वादा करके कि वहाँ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा, आश्रम में जाने को तैयार हुई। एक खाली कुटिया में उसने प्रवेश कर दरवाजा बन्द कर दिया । अबला के कुटिया में प्रवेश करते समय एक विचित्र घटना घटी। यद्यपि अंधकार होने से आचार्य यह नहीं जान सके थे कि अबला बाला है या युवती, कुरूप है या सुन्दरी, क्या पहन हुये है, परन्तु प्रवेश के समय अचानक बिजली चमकी और उस प्रकाश में देखा कि वह अबला सालह वर्षीय सुन्दरी है, पवन के वेग से उड़े हुय आँचल को इसने इतनी जल्दी संवारा कि शरीर का कोई अंग नहीं दिखा, फिर भी चलते-चलते मृगनयनी के जादूभरी चकित दृष्टि से लज्जा के साथ देखा, जिससे आचार्य एक बार विस्मृत हो गये | उनका मन चंचल हो गया, वे कर्तव्य भूल गये | वे उससे परिचय 659)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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