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________________ कहा एकान्त में नहीं बैठना चाहिये । एक बार किसी राजा दरबार में अपने मंत्री से प्रश्न पूछा कि पाप का मूल कारण क्या है? मंत्री ने पाप के अनेक कारण उत्तर रूप में बताये लेकिन उन उत्तरों से राजा को संतुष्टि नहीं हुई । राजा ने "मंत्री ! तुम्हें तीन दिन का समय दिया जाता है । तुम्हे प्रश्न का उत्तर सन्तोषजनक देना है, नहीं तो तुम्हें मृत्युदण्ड दिया जायेगा ।" मंत्री बहुत चिंतित हुआ । वह प्रश्न के उत्तर की खोज में खाना पीना, सोना सब भूल गया । उसको चिंतित देख उसकी पुत्री ने चिन्ता का कारण पूछा। मंत्री ने राजा के द्वारा पूछा गया प्रश्न अपनी पुत्री को बता दिया । पुत्री ने कहा पिताजी! आप चिन्ता न करें । मैं इस प्रश्न का उत्तर तीन दिन के भीतर-भीतर बता दूँगी । आप शान्ति से भोजन करिये । पुत्री राजा के प्रश्न का समाधान करने हेतु अनेक प्रकार के श्रृंगार करके पिताजी के साथ हास्य-विनोद करने लगी तथा नाना प्रकार के मिष्टान्नादि भोजन बनाकर बड़े प्रेमपूर्वक पिताजी को खिलाने लगी । एकान्त में हाव-भावपूर्वक वार्तालाप करती हुई नाना प्रकार की चेष्टायें करने लगी। तीसरे दिन जब मंत्री भोजन कर रहा था और पुत्री पंखा कर रही थी तब मंत्री (पिताजी) का मन चंचल हो गया और उन्होंने पुत्री का हाथ पकड़ लिया। तभी लड़की ने कहा पिताजी! पिताजी! आप यह क्या कर रहे हैं? अरे ! यही तो राजा के पूछे गये प्रश्न का उत्तर है । यह वासना ही पाप का कारण है । - - ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये आचार्य उमास्वामी महाराज ने तत्त्वार्थ सूत्र के सातवें अध्याय में ब्रह्मचर्य व्रत की भावनाओं का वर्णन करते हुये लिखा है - स्त्री रागकथाश्रवण - तन्मनो - हरांगनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरण वृष्येष्टरस - स्वशरीर संस्कारत्यागाः पञ्च । 661
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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