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________________ है तो इस क्रोध पर क्रोध करो। यदि किसी को जीतना है तो क्रोध पर विजय प्राप्त करो, जिससे क्षमागुण प्रगट हो जाये । देव, मनुष्य और तिर्यंचों के द्वारा घोर व भयानक उपसर्ग करने पर भी जो क्रोध से तप्त नहीं होता, उसके निर्मल क्षमाधर्म होता है । ऐसी उत्तमक्षमा के धारी दिगम्बर मुनिराज होते हैं, जो किसी भी क्षेत्र में, किसी भी काल में और किसी भी निमित्त के मिलने पर क्रोध नहीं करते, कषाय नहीं करते। अगर क्रोध कर लें तो वे अपने पद में स्थिर नहीं रहते, मुनि नहीं रहते । सुकुमाल मुनिराज को स्यालनी ने तथा सुकोशल मुनिराज को शेरनी ने खाया, पर उन्हें किंचित भी क्रोध नहीं आया । एक बार एक महात्मा जी एक आम के पेड़ के नीचे बैठे थे । वहाँ आम खाने की इच्छा से कुछ उद्दण्ड लड़के पेड़ में पत्थर मार रहे थे । पत्थर मारते-मारते एक पत्थर महात्मा जी को भी लग गया, खून बह निकला। किन्तु वे कुछ न बोले । लड़के सहम गये कि महात्मा जी श्राप दे रहे हैं । वे महात्मा जी के पास जाकर क्षमा याचना करने लगे । वे बोले-बेटे! डर क्यों रहे हो? मुझे तो इस बात का दुःख है कि वृक्ष जो एकेन्द्रिय प्राणी है, उसको आप लोगों ने पत्थर मारे तो उसने आपको मीठे फल प्रदान किये । किन्तु मुझे पत्थर लगने पर मैं आप लोगों को कुछ न द सका । लड़के महात्मा जी की वाणी सुनकर गद्गद् हो चरणों में झुक गये | जिस प्रकार बसूला से काटे जाने पर चंदन सुगन्ध ही देता है, उसी प्रकार महापुरुष दूसरों के द्वारा पीड़ित किये जाने पर भी उन पर क्रोध न करके, उनके हित की ही कामना करते हैं । क्रोध से अन्धा हुआ प्राणी विवेकरहित होकर पहले अपने आपको ही जलाता है, स्वयं सन्तप्त होता है, बाद में अन्य प्राणियों को 51
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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