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________________ जैसे रुई के ढेर को एक चिनगारी । ऐसे क्राध को सदा के लिए छोड़ देना चाहिए । परिवार में जरा-जरा से क्रोध के कारण जब कलह हो जाती है तो सारा वातावरण अशान्त हो जाता है । अतः, कैसी भी परिस्थिति हो, हमेशा वातावरण को शान्त बनाने का ही प्रयास करना चाहिये । यदि सामनेवाला गुस्सा कर रहा हो तो उस समय वातावरण को हल्का बनाने का प्रयास करना चाहिये । सुकरात के जीवन में ऐसा हमेशा हुआ । उनकी जीवनसाथी बड़ा गुस्सा करती थीं और वे कहते थे कि हमने शान्ति अपनी जीवनसाथी से सीखी है । उनको देख-देखकर सीखी है। वो जितना गुस्सा करती, मैं उतना शान्त रहना सीख गया। क्या हुआ, एक बार वो खाना खाने 2 बजे आये । इतनी देर तक खाना रखा रहा तो उनकी जीवनसाथी को बड़ी गुस्सा आई कि अभी आये हो? और बहुत ज्यादा गुस्सा हुई ? जब इन्होंने देखा कि अभी तो पारा बहुत गर्म है, सो ये जीना से उतरकर वापिस लौटने लगे तो । उनको लगा 2 बजे तो आये थे और अब हम गुस्सा हो गये सो ये भूखे और लौटे जाते हैं। तो पीछे रखा हुआ धोनधान उठाया और उनके ऊपर उड़ेल दिया। वे मुस्कराकर बोले- भाग्यवान् ! अभी तक तो सुना था कि गरजने वाले बादल बरसते नही हैं, पर आज तो बरस भी गये । उनकी जीवनसाथी को भी हँसी आ गई और वातावरण शान्त हो गया । इस प्रकार हम भी वातावरण को हल्का बनाकर क्रोध के मौकों पर क्रोध करने से बच सकते हैं । क्रोध नरकादि दुर्गतियों में ले जानेवाला होता है । क्रोध करने से न शरीर की रक्षा होती है, न आत्मा की । अतः, यदि क्रोध करना ही 50
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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