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________________ भी लोग मेरे सामने गुस्से से भरे हुये आये, उस टैक्सी ड्राइवर की सीख को ध्यान में रखकर मैंने उसे प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाया । मैंने मुस्कराकर उनका अभिवादन किया और शुक्रिया कहकर विदा हो गया। आप भी इस मूल-मंत्र का अनुसरण करें। उन्होंने लिखा है कि आप सदा खुश रहेंगे, यह मेरा दावा है । क्रोध आने के दो मुख्य कारण होते हैं । एक तो अन्तरंग कारण और दूसरा बाह्य कारण । अंतरंग कारण-अनंतानुबंधी क्रोध कषाय का उदय और बहिरंग में वैसा ही निमित्त मिल जायेगा तो निमित्त के मिलते ही क्रोध आ जायेगा । इसलिये ज्ञानी क्रोध के निमित्त से बचते हैं। यदि कहीं कर्फ्यू लगा है, पुलिस खड़ी है, पथराव हो रहा है, यदि आप वहाँ जायेंगे, तो या तो गोली लगेगी, या पत्थर लगेगा तो सिर फूट जायेगा । अतः कर्फ्यू में गोली लगने से बचने के लिये दूसरा रास्ता अपना लो। यदि वहाँ चले जाओगे तो फँस जाओगे। पुलिस आपको पकड़ लेगी, जेल में बंद कर देगी । तो क्रोध जब आता है तो ज्ञानी बुद्धिबल से बच जाता है । क्रोध थोड़े समय का होता है । यदि उससे अपने आप को हटा लिया जाये तो बच गये और उसमें आ गये तो फँस गये | अतः उन सब कारणों से दूर रहा जिनसे तुम्हें क्रोध आता है। यदि आप इन कारणों से बचते रहोगे तो क्रोध से बचे रहोगे और उसके दुष्परिणामों से बचे रहोगे । क्रोध का प्रारम्भ नादानी से एवं अन्त पश्चाताप से होता है । पश्चाताप की नौबत आये उसके पूर्व ही क्रोध को छोड़ देना चाहिए क्योंकि जो जहर खाता है वही मरता है, खिलाने वाला कभी नहीं मरता, उसी प्रकार जो क्रोध करता है वही दुःखित एवं अस्वस्थ होता है, जिस पर किया जाता है वह नहीं । अतः अपने को कष्ट देने की मूर्खता न करें । क्रोध प्रीति को एक क्षण में ही समाप्त कर देता है । 49
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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