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________________ आमंत्रण स्वीकार नहीं करते । हम भोजन का पहला ग्रास तोड़ ही रहे थे कि सैनिकों ने हमारे ऊपर बड़े खूखार और शिकारी कुत्ते छोड़ दिये, इससे ज्यादा और हमारा अपमान क्या हो सकता है? सम्राट ने कहा मैं बहुत दुःखी हूँ कि मेरे सभी पुत्रों में से एक भी एसा पुत्र नहीं निकला जिसे में अपना यह राज्य भार सौंपकर चला जाऊँ और त्याग धर्म को धारण कर आत्मा का कल्याण करूँ। तभी सबसे छोटा राजकुमार पिता के पास आया और बोला-पिता जी आप निराश मत होइये मैंन आज बड़े आनन्द और उत्साह से भर पेट भोजन किया है। पिता ने पूछा-बटे! तूने इतने कुत्तों के बीच भरपेट भोजन कैसे किया? उस बेटे ने कहा-पिताजी जैसे ही कुत्ते आये, मैं एक स्थान पर एक-एक टुकड़ा उन कुत्तों को डालता रहा, कुत्ते अपना भोजन करत रहे और मैं अपना भोजन करता रहा | जो दूसरों को खिलाता है, वा कभी भूखा नहीं रहता और जो दूसरों को सताता है, वह कभी सुखी नहीं रह सकता। जो दूसरों को खिलाता है, वो खिलखिलाता है और जो दूसरों को सताता है, वो आँसू बहाता है | सम्राट प्रसन्न हो गया | उस छोटे बेटे का नाम था श्रेणिक, जो मगध की राजगद्दी पर बैठा। जा संपूर्ण परिग्रह छोड़ कर संयम धारण नहीं कर सकते उन्हें दान के माध्यम से अपने धन का सदुपयोग अवश्य करना चाहिये । संसार में मनुष्यों की प्रवृत्ति दान देने के संदर्भ में भिन्न-भिन्न पायी जाती है, जो निम्न चार प्रकार के मनुष्यों के रूप में है1. मक्खीचूस मनुष्य - जो न स्वयं खायें और न दूसरों को खाने दें। (536
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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