SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 550
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाना चाहिये । अर्थात् संसार की झंझटों को, समस्त आरंभ, परिग्रह को छोड़कर त्याग धर्म को धारण कर लेना चाहिय | मोक्ष का मार्ग एक मात्र उत्तम त्याग धर्म ही है | सम्राट के बहुत पुत्र थ। उसने सोचा अपना राज्य किसे सौंपना चाहिये । सम्राट का एक युक्ति सूझी और उसने अपने सभी पुत्रों को भाजन के लिये अपने महल में आमंत्रित किया। सभी राजकुमार बड़े प्रसन्न हुये कि आज पिता के साथ भोजन करेंगे। सभी पुत्र राजमहल में पहुँचे । वहाँ बड़ा ही स्वादिष्ट भोजन बना था। भाजन की खुशबू चारों ओर फैल रही थी। राजकुमारों के आगे भोजन की थालियाँ आती हैं, सारे राजकुमार एक लाइन में भाजन करने बैठ जात हैं। जैसे ही वे राजकुमार भोजन करने के लिये पहला ग्रास तोड़ते हैं सम्राट न सैनिकों को इशारा किया कि एक सेकंड भी नहीं लग पाया, पलक झपकते ही सैकड़ों शिकारी कुत्त राजकुमारों पर झपट पड़े, जिनकी दाड़ें विकराल, नाखून बड़े-बड़े शेर की तरह खूखार जो क्षण भर में आदमी को चीर फाड़ डालें ऐसे कुत्ते राजकुमारों पर आक्रमण करने लगे कुत्तों को देखकर सारे राज कुमार थाली छोड़कर बाहर भाग गये। सांझ का सम्राट ने अपने सभी पुत्रों का दरबार में बुलाया और पूछा-आप सबने भोजन कर लिया सारे भाइयों ने मिलकर खाया बड़ा आनंद आया होगा। राजकुमारों ने कहा-पिताजी आप भी अच्छा मजाक कर लेते हैं, आप कह रहे हैं कि बड़े आनंद से भोजन किया होगा, वहाँ ता प्राणां के लाले पड़ गये, मौत सामने खड़ी थी और हम भोजन करते | सम्राट ने पूछा-क्या हुआ? राजकुमारों ने कहा पिताजी! आज आपने भोजन पर बुलाकर हमारा अपमान किया, हमारी बेइज्जती की। यदि हमें मालूम होता तो हम कभी आपका 535
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy