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________________ भरत जी ने नहीं सोचा और चक्र छोड़ दिया। उस समय बाहुबली को भी क्रोध आ सकता था, पर उन्होंने सोचा तीन ज्ञान का धारी, छह खण्ड का स्वामी तद्भव मोक्षगामी गलती करे तो करे, पर मैं क्यों गलती करूँ? उन्होंने क्रोध के ऊपर क्षमारूपी ढाल को अड़ा दिया और पंचमुष्ठि केशलांच कर मुनिदीक्षा धारण कर ली तथा आदिनाथ भगवान से पहले मोक्ष गये । यह सब क्षमा की महिमा है । क्रोध आदमी की समस्या है। ये समस्या एक आदमी की नहीं, बल्कि हर आदमी की है । क्रोध हिन्दू को भी आता है, मुसलमान को भी आता है, ईसाई को भी आता है। शायद ही ऐसा कोई आदमी हो जो क्रोध की समस्या से ग्रसित न हो । क्रोध जाति-पांति को नहीं देखता, छोटे-बड़े को नहीं देखता, अमीर-गरीब को नहीं देखता, ज्ञानी - मूर्ख को नहीं देखता । क्रोध सबको आता है । क्रोध पक्षपात नहीं करता । T कभी-कभी तो आदमी इसलिये क्रोध करता है कि उसे क्रोध क्यों आता है ? आदमी क्रोध को भी क्रोध से मिटाना चाहता है । पर ध्यान रखना, क्रोध से क्रोध मिटता नहीं है । जैसे अग्नि से अग्नि नहीं बुझती, वैसे ही क्रोध एक अग्नि है और यही वजह है कि जब आदमी क्रोध करता है, तो उसे लोग अक्सर कहते हैं -आदमी क्रोध में आगबबूला हो रहा है, क्रोध में अंगार बन रहा है । अगर क्रोध की ज्वाला को शान्त नहीं किया तो जिन्दगी अशान्तिमय होगी, घर में कलह का वातावरण होगा। शास्त्रों में कहा भी है क्राधात् प्रीति विनाशो, मानाद् विनयोपघात माति । मायात् विश्वासहानिं सर्व गुण विनाशको लोभः ।। क्रोध से प्रीति का नाश होता है, मान से विनय का विघात होता 31
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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