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________________ वाले कुशल मनुष्यों के द्वारा यह क्रोध जड़ मूल से उखाड़ फेकने योग्य है। आचार्यों ने कहा है कि: नास्ति क्रोधः समं पापं नास्ति क्रोधः समं रिपुः । क्रोधोन्मूलं अनर्थनाम्, तस्मात क्रोधो विवर्जयत ।। संसार में क्रोध के समान कोई पाप नहीं है । क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं है । तथा संसार में जितने अनर्थ होते हैं, वह सब क्रोध के ही कारण होते हैं । हमें ऐसे क्रोध को छोड़ देना चाहिये । यदि शान्ति चाहिये तो क्रोध के अवसर पर गम खाने में ही फायदा है कम खाना, गम खाना । न हाकिम पर जाना, न हकीम पर जाना । कम खाओगे तो बीमार नहीं पड़ागे और गम खाओगे तो लड़ाई-झगड़े नहीं होंगे, वकील के चक्कर नहीं काटना पड़ेंगे । क्रोध आत्मा की एक ऐसी विकृति है, कमजोरी है, जिसके कारण व्यक्ति का विवेक समाप्त हो जाता है । वह भूल जाता है कि वह क्या कर रहा है, क्या करने जा रहा है और इसका परिणाम क्या निकलेगा? यद्यपि आँखें हैं, लेकिन वह देख नहीं सकता । कान हैं, लेकिन अब वह सुन नहीं सकता । व्यक्ति को जब क्रोध आता है तो उसके सारे गुण समाप्त हो जाते हैं । क्रोध कितना अन्धा होता है । भरत चक्रवर्ती जब तीनां युद्धों में हार गये तो चक्र उठा लेते हैं हाथ में और उस चक्र को बाहुबली पर छोड़ देते हैं । क्या भरत को पता नहीं था कि बाहुबली चरमशरीरी हैं, मेरा और इनका एक खून है, एक खून पर चक्र नहीं चलता? परन्तु जिस समय क्रोध आता है तो विवेक शान्त हो जाता है । 30
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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