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________________ है, माया से विश्वास की हानि होती है और लोभ सब गुणों का नाश करने वाला है। यद्यपि चारों कषायें हमार लिए अहितकारी हैं, पर क्रोध एक धधकता अंगारा है। उसकी प्रचण्ड ज्वाला में सारे गुण स्वाहा हो जाते हैं। इसलिए सर्वप्रथम इस छुड़ाया है। जिस प्रकार रक्तरंजित वस्त्र को रक्त से साफ नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार क्रोध का प्रतिकार बैर, घृणा, प्रतिशोध से नहीं किया जा सकता। क्रोध रूपी धधकते अंगारे को बुझाने के लिए क्षमा के नीर की आवश्यकता है, क्योंकि हजारों वर्षों की तपस्या को एक क्रोध क्षणांश में समाप्त करने में कारण है और हजारों वर्षों के बैर को क्षणांश में समाप्त करने में क्षमा कारण है | क्रोध की अग्नि को बुझाने क लिये, क्रोध का पेट्राल मत डालो। क्योंकि पेट्रोल से आग बुझती नहीं है | आग का उपचार पानी है और क्रोध का उपचार क्षमा है। सामने वाला हमारे साथ कितना भी अनुचित व्यवहार करे, यदि हमारे अन्दर क्षमा गुण है, तो वहाँ हमारा कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है | क्षमा हमारा स्वभाव है | उसे अनेक प्रतिकूलतायें मिलने पर भी नहीं छोड़ना चाहिय । जिसके उत्तम क्षमा होती है, वह नरक/तिर्यच गति में नहीं जाता। उत्तम क्षमा ही मन की उज्ज्वलता है। ऐसे क्षमाधर्म को छोड़कर क्रोध करना पागलपन है। क्रोध में व्यक्ति का विवेक काम नहीं करता। उसे भले-बुरे की पहचान नहीं रहती। जिस पर क्रोध आता है, क्रोधी उसे भला-बुरा कहने लगता है, गाली देने लगता है, मारने लगता है। क्रोध के समान आत्मा का कोई दूसरा शत्रु नहीं है। क्राध के आवेश में व्यक्ति की विचारशक्ति समाप्त हो जाती है। क्रोध से सदा अहित ही होता
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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