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________________ इन्द्रिय-विषयों में सुख मानने वाला व्यक्ति कभी भी शान्ति का अनुभव नहीं कर सकता। वह पर - पदार्थों में ममत्व - बुद्धि रखता है, इसलिये उसे बेहोशी का नशा - जाल छाया रहता है । पर जैसे - ही - पर - पदार्थों से अपनत्व - बुद्धि दूर होती है, उसको आनन्द की लहर आने लगती है । अतः शरीरादि पर - पदार्थों में अपनत्व - बुद्धि-रूपी बहिरात्मपना को छोड़कर, शरीर से भिन्न आत्मा को पहचान कर, अन्तरात्मा बनना चाहिये और संयम धारण कर सदा आत्मा व परमात्मा का ध्यान करना चाहिये, यही शान्ति प्राप्ति का उपाय है। संयम का कार्य अपने मन व इन्द्रियों को वश में करना है । यदि हम अपने मन व इन्द्रियों को अपने वश में रखना चाहते हैं, तो जीवन में संयम का धारण करें। भले ही धीमी गति से सही, पर चलना तो शुरू कर दें । चलने वाला एक - न - एक दिन मंजिल अवश्य पा लेता है। जीवन में धारण किये गये बीज के समान छोटे-छोटे नियम / व्रत भी एक दिन बहुत बड़े विस्तार को पा जाते हैं । कहा गया है घुटनों के बल चलते-चलते, पांव खड़े हो जाते हैं । छोटे-छोटे नियम एक दिन, बहुत बड़े हो जाते हैं ।। प्रथमानुयोग के ग्रन्थों में तो इस तरह के अनेक उदाहरण आये हैं। सिंह, सर्प, गाय, बैल, बन्दर, हाथी, तोता आदि पशु पक्षी भी सम्यग्दर्शन पा लेते हैं और व्रतों को अंगीकार करके सद्गति के पात्र हो जाते हैं। धर्म के मार्ग में शरीर नहीं, साहस देखा जाता है । और ऐसे साहसी भले ही परिस्थितियों से कमजोर रह हों, किन्तु दृढ संकल्प शक्ति से भव-सागर से पार हुए हैं । 392
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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