SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 408
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक बार नगर के बाहर उद्यान में तपस्वी सागर सेन नाम के मुनिराज ठहर थे। उनक दर्शनों क लिये राजा और नगर निवासी बड़ी प्रसन्नता से गाजे बाज के साथ आये थे। व मुनिराज की वन्दना और पूजा-स्तुति कर वापिस नगर चले गये | इसी समय एक सियार ने इनके बाजों की आवाज सुनकर यह समझा कि ये लोग किसी मुर्दे का डाल कर गये हैं। सा वह उसे खाने के लिय आया। उसे आता देख मुनिराज ने अवधिज्ञान से जान लिया कि यह मुर्द को खाने के अभिप्राय से इधर आ रहा है। पर यह सम्यग्दर्शन और व्रतों को धारण कर, भविष्य में माक्ष जाएगा, इसलिये इस सुलटाना आवश्यक है। यह विचार कर मुनिराज ने उसे समझाया-अज्ञानी पशु! तुझे मालूम नहीं कि पाप का परिणाम बहुत बुरा होता है। नरकादि दुर्गतियों में जाकर बहुत कष्ट सहन करना पड़ता है | सियार की होनहार अच्छी थी, इस कारण वह मुनिराज के उपदेश को सुनकर शान्त हो गया। उसे शान्त दखकर मुनिराज फिर बाल-"प्रिय! तू अन्य व्रतों को धारण नहीं कर सकता, इसलिये सिर्फ रात में खाना पीना ही छोड़ दे।' सियार ने रात्रि भोजन त्याग का व्रत ले लिया। कछ दिनों तक तो उसने केवल इसी व्रत को पाला। इसके बाद उसने मांस बगैरह भी छोड़ दिया। अब वह केवल थोड़ा बहुत जो भी शुद्ध सात्विक खाना मिलता उस ही खाकर रह जाता। इस वृत्ति से उसे बहुत सन्तोष हो गया। एक बार गर्मी के दिनों में उसे केवल सूखा भोजन खाने को मिला। इसे बड़ी जोर की प्यास लगी। इसक प्राण छटपटाने लगे | यह एक बावड़ी पर पानी पीने गया। बावड़ी का पानी बहुत नीचे था। सीढ़ियों से जब वह बावड़ी में उतरा, ता इस वहाँ अंधेरा-ही-अंधेरा दिखा | सियार न समझा कि रात हो गई, सो वह बिना पानी पिये ही बावड़ी से बाहर आ गया। (393)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy