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________________ किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे । वे बहुत धनवान थे । घर में पत्नी, पुत्र, पुत्री, माता, पिता, समाज में प्रतिष्ठा सब कुछ था, पर इतना सब कुछ होते हुये भी वे अशान्त रहते थे । वे एक दिन बैठे-बैठे सोच रहे थे कि मुझे शान्ति क्यों नहीं मिल रही है? क्या करूँ ? निर्णय लेते हैं कि मुनिराज के पास जाकर इसका समाधान लेना चाहिये | अगले दिन वे मुनिराज के पास जंगल में जाते है और कहते हैं, कि महाराज! मेरे पास भगवान का दिया सब कुछ है, किन्तु मेरे पास शान्ति नहीं है । यह आपके पास है, अतः आपसे शान्ति लेने आया हूँ । महाराज कहते हैं कि वह सामने जो कुटिया दिख रही है, उसके अन्दर मेरा कमण्डलु रखा है, जाओ उसे ले आओ । सेठ जी जाते हैं, कुटिया के अन्दर प्रवेश करते हैं पर कमण्डलु को स्पर्श करते ही जोर से डर कर चिल्लाते हैं और भागकर बाहर आ जाते हैं। डरे हुये ही महाराज से कहते हैं कि महाराज ! वहाँ पर एक बहुत बड़ा साँप है । यह सुनकर मुनिराज कुटिया में जाते हैं। सेठ जी भी डरते-डरते उनके पीछे चलते हैं । मुनिराज कमण्डलु उठाते हैं और उसके पास पड़ी हुई एक रस्सी उठाते है, सेठ जी से कहते हैं-कि सेठ जी ! यह तो रस्सी है, आप कहते थे साँप है । अब आगे उपदेश देते हैं कि इस घटना द्वारा मैं आपको शान्ति देना चाहता हूँ । जब तक आपने वस्तु - स्वरूप को नहीं समझा तब तक ही आपके अन्दर अशान्ति रहती है । शान्ति का आपके अन्दर अनुभव नहीं हो सकता । किन्तु जब आप वस्तु स्वरूप को भली-भाँति समझ लेते हैं कि सही क्या है और गलत क्या है, रस्सी है, यह साँप नहीं है, इस प्रकार का भ्रम जब मिट जाता है, तब अशान्ति का भी अन्त हो जाता है । आपके अन्दर तब बिल्कुल भी अशान्ति नहीं रहेगी, सब खत्म हो जायेगी | इसके अभाव में आपके अन्दर अशान्ति - ही - अशान्ति रहेगी । 391
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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