SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गया। अब तो हाथ उठता भी नहीं है। तकलीफ बहुत होती है, दुकान बन्द हुई सो घर का कामकाज भी चौपट हो गया। जज ने सारी बात सुनकर कहा-अच्छा तुम्हारी वेदना मैं समझ रहा हूँ कि आपको हाथ उठाने में, रखने में काफी तकलीफ होती है । वह कहता है कि, जज साहब! हाथ हिलता भी नहीं है, उठना तो दूर | जरा सा भी टच हो तो काफी तकलीफ होती है। जज ने कहा मैं समझ रहा हूँ, आपकी तकलीफ। जरूर मुआवजा दिलाऊँगा। हाथ अब हिलता-डुलता भी नहीं है | बस इतनी-सी जानकारी मुझे और द दो कि चाट लगने के पहले आपका हाथ कितने ऊपर तक उठ जाता था । जनाब झटके में एकदम हाथ ऊपर उठाकर कहते हैं, साहब ! पहले ता इतना (हाथ ऊपर उठाते हुए) उठ जाता था । और अब दर्द हो रहा है, हाथ हिलता भी नहीं है, सारे काम ठप्प हो गए हैं। झूठ ज्यादा देर चलने वाली नहीं। सामने वाला बड़ा समझदार हाता है, वह पकड़ लेता है। ऐसी स्थिति में उसकी सारी पोल पट्टी खुल गई। और उस अदालत से बाहर कर दिया गया । ___ एक सज्जन बोले-इन दिनों मैं धर्म बहुत कर रहा हूँ | रोज मंदिर जाता हूँ, रात में नहीं खाता हूँ | जुआ, शराब आदि क व्यसनों से बहुत दूर रहता हूँ | एक दम साफ सुथरा जीवन बनता जा रहा है। सामने वाले को यह सब सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ | वह बोला अर, मुझे तो यह मालूम ही नहीं था कि आप इतना सब कुछ करने लगे। बड़ा अच्छा बन गया आपका जीवन | फिर भी एकाध कोई बुराई तो बची होगी? तो वह कहता है, हाँ | बस एक ही बुराई है मेरी कि मैं झूठ बहुत बोलता हूँ | इसका मतलब यह कि वह जो बोल रहा है, वह सब झूठ ही था | सामने वाला समझ लेता है कि आप किस आशय से अपनी बात कर रहे हो। झूठ से यहाँ कुछ मिलने (322)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy