SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अज्ञान ही दुःख का कारण है और भेद विज्ञान अर्थात् सच्चा ज्ञान ही उस दुःख से छूटने का उपाय है। एक बार एक सेठ की हवेली में रंग-रोगन का कार्य चल रहा था । सांय काल थोड़ा-सा लाल रंग बच गया । उसे लोटे में रखकर मिस्त्री ने सेठ की लड़की को दे दिया कि इसको सुरक्षित स्थान पर रख दो, सुबह हम ले लेंगे । लड़की ने वह लोटा ले जाकर सेठ जी के पलंग के नीचे रख दिया। सेठजी दुकान से देर से आये और पलंग पर जाकर सो गये। सुबह उठे और अंधेरे में पानी का लोटा समझकर रंग का लोटा लेकर शौच करने चले गये, शौच के बाद जब उठने लगे तो हाथों पर लाल रंग लगा देखकर खून समझ लिया और चिल्लाने लगे तथा असहाय होकर गिर पड़े । चार व्यक्तियों ने सेठ जी को उठाकर चारपाई पर लिटाया, वैद्य बुला लिये। इतने में कारीगरों ने आकर लड़की से रंग माँगा तब उसे वहाँ वह लोटा नहीं मिला । लड़की ने कहा - पिता जी आपने रंग का लोटा इस्तेमाल कर लिया, आपको कुछ नहीं हुआ, वह खून नहीं था, वह तो रंग था, इतना सुनकर सेठ जी उठकर खड़े हो गये और बोले- बेटी ! जल्दी मेरा टिफिन लाकर दो, मुझे दुकान जाना है, बहुत देर हो गई है । बस यही दशा इस संसारी प्राणी की है। यह व्यर्थ ही अपने आपको भूलकर संसार में भ्रमण करता हुआ दुःख उठा रहा है पियो अनादि, भूल आप को भरमत वादि । यदि इसे स्व- पर भेद विज्ञान हो जाये तो इसका संसार परिभ्रमण समाप्त हो जाये और दुःख दूर हो जाये | आचार्य अमृत चन्द्र स्वामी कलश 131 में लिखते हैं - मोह महामद - भेद विज्ञानतः सिद्धाः सिद्धाः ये किल केचन । 294
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy