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________________ चलन का अनुरोध किया। उन्होंने जानकारी दी कि सारा राजमहल धू-धू कर जल रहा है | सब प्रयास करने पर भी आग शान्त नहीं हो रही है। आप जल्दी चलें । लेकिन उन्हें कुछ सुनाई नहीं दिया। वे तो ध्यानमग्न थे। कुछ ही क्षणों में यागमाया का विस्तार होते-होते वह अग्नि सभा मंडप तक पहुँच गई । जनता भाग खड़ी हुई। पास में बैठे साधु संत भी भागने लगे। लेकिन राजा जनक ऐसी गहरी समाधि में चल गये, मानों उन्हें पता ही नहीं चल सका कि बाहर क्या हो रहा है? महर्षि वेदव्यास ने दखा कि लोग भागने लगे हैं। उन्होंने योगमाया को समट लिया। सभा में शान्ति लौट आई | भागन वाले सभी सकपका गये लेकिन महायोगी राजा जनक ध्यानस्थ बैठे रहे | उन्हें पता ही नहीं चला कि बाहर क्या हो रहा है | स्थिति शान्त होने से सब बैठ गय | महर्षि वेदव्यास न कहा-बंधुओ! हम राजा जनक का इंतजार किसलिये करते हैं? शायद आपकी शंका का समाधान हा गया होगा? इस पूरे सभा मंडप में अगर कोई सच्चा श्रोता है तो वे केवल राजा जनक ही हैं। राजा जनक अग्नि लगने के पूर्व जिस अवस्था में थे, अग्नि लगने पर एवं अग्नि शान्त होन के बाद भी उसी अवस्था में स्थिर रहे | उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया | जब राजा जनक से पूछा गया तो उन्होंने एक ही उत्तर दिया-मिथिला जल रही है, मैं नहीं जल रहा हूँ | इसी को नारायण श्री कृष्ण ने गीता में लिखा है नैवम् छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैवम् दहति पावकः । जो सत्-चित् आनन्दस्वरूप आत्मा है, उसे शस्त्र काट नहीं सकता, अग्नि जला नहीं सकती, पानी गीला नहीं कर सकता, वायु सुखा नहीं सकती, चोर चुरा नहीं सकता। ऐसी हमारी उस आत्मा (292)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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