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________________ पर वह तभी प्रगट होगा जब ऊपर के कंकड़ पत्थर -मिट्टी आदि को हटाया जाता है। उसी प्रकार हमारे भीतर बैठा हुआ सत्य भी तभी प्रगट होगा जब हम अहंकार, मिथ्यात्व, राग-द्वेष, कषायों के झाड़-झंझाड़, कंकड़-पत्थर, मिट्टी आदि का हटा देंगे | अतः सत्य स्वरूप को प्राप्त करने के लिय अनुभव की गहराई में उतरना चाहिये । अपना यह आत्मा कर्मों की मार अनादि-काल से सहन करता आ रहा है | अब अत्यन्त दुर्लभता से प्राप्त इस मनुष्यपर्याय में अपने आपको पहचान लो कि मैं कौन हूँ? धर्म का मार्ग ही सारी दुनिया में सत्य का मार्ग है । अतः इस पर चलने का पुरुषार्थ करो। सत्य स्वरूप को समझ बिना कभी मोक्ष नहीं होता । यदि हमारी कोई वस्तु घर में गुम गई हा और हम उसे बाहर ढूंढ़ें तो क्या वह प्राप्त होगी? नहीं होगी। जब तक हम उसे अपने घर में नहीं ढूंढ़ेग, वह कभी प्राप्त नहीं हो सकती | इसी प्रकार सत्य तो आत्मा का स्वभाव है, आत्मानुभूति है, जिसे हम पर-पदार्थों में ढूंढ़ रहे हैं, इसलिये आज तक प्राप्त नहीं हुआ। सत्य स्वभाव की प्राप्ति तो केवल उन्हें ही हुई है, जिन्होंने समस्त पर-पदार्थों से माह छोड़कर संयम तप को अपनाकर अपने स्वरूप में डुबकी लगाई है | जिसको शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सक वह सत्य है। सत्य को केवल महसूस किया जा सकता है, लेकिन कहा नहीं जा सकता। एक बार राजा जनक की सभा लगी हुई थी। हजारों व्यक्ति सभा में बैठे हुये थे। महर्षि वेदव्यास न योगमाया का प्रयोग कर दिया | मिथिलापुरी में आग लग गई। राजमहल धू-धू कर जलने लगा। कर्मचारीगण भागे-भाग सभा मंडप में आए। उस समय महाराज जनक नेत्र बंद कर सत्संग में ध्यानमग्न थे । कर्मचारी आए। उन्होंने महाराज को आग लगने की जानकारी देकर तुरन्त राजमहल में (291)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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