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________________ बोलता। वे सभी चक्रवर्ती क पुत्र दीक्षित होने तक किसी से नहीं बाले, उन्होंने सोचा कि जो संसार से विरक्त नहीं है उनस एक विरक्त व्यक्ति का बोलन का प्रयोजन ही क्या है? सत्य तो बोलने से प्राप्त नहीं होगा। पाप क्रियाओं से मौन होकर ही सत्य को प्राप्त किया जा सकता है। सत्य अनुभूति का विषय है, उसे शब्दों क माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता | एक बार एक दम्पति में काफी विवाद हो गया, अदालत में उपस्थित हुय | पक्ष-विपक्ष की काफी बहस हुई। बहस में निराकरण नहीं हुआ। जज ने कहा-तुम लोग व्यर्थ की टकराहट में जी रहे हो और उसने विवाद समाप्त करन हतु पति महादय से कहा-बस मैं तुमस हाँ या ना में उत्तर चाहता हूँ , इसके अलावा मैं व्यर्थ की बकवास नहीं सुनना चाहता | वह पुरुष कहने लगा-साहब ! किसी भी बात का उत्तर मात्र 'हाँ' या 'ना' में नहीं दिया जा सकता | आप तथ्य को सुनिये फिर निर्णय दीजिए। जज ने कहा-मैं जो कह रहा हूँ उतना ही सुनो और उत्तर दो | उस पुरुष ने कहा-आप मरी एक बात का उत्तर हाँ या ना में दीजिये, तो मैं भी आपके सभी प्रश्नों का उत्तर हाँ या ना में दूंगा। मेरा मात्र इतना सा प्रश्न है-"क्या आपने अपनी पत्नी को पीटना बन्द कर दिया?' जज विचार में पड़ गये-अगर हाँ बोलता हूँ तो इसका मतलब पहले पीटता था, न बोलता हूँ तो इसका मतलब पीटना चालू है, ता ये और मैं एक से अपराधी हुये | वह जज मौन हो गया और समझ गया-सत्य अभिव्यक्ति का विषय नहीं, अनुभूति का विषय है। जो मोह एवं कषायों को छोड़ कर स्वयं के सत्य का जान लेता है फिर उसे किसी को जानने की आवश्यकता नहीं रहती है। जिस प्रकार हम जिस भूमि पर बैठे हैं उसक नीचे निर्मल पानी को स्रोत हे, (290)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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