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________________ निराश है, उसे लग रहा था मेरे बेटे सत्य को प्राप्त नहीं कर पाये पर उसे लगा अभी चौथा बेटा शेष है उस पर ज्यादा विश्वास तो नहीं था, क्योंकि वह काफी छोटा था। उससे उठकर कहा, तूने क्या पाया? चौथ वाले बेट ने तो पिता की आँखों में ऐसे दखा कि वह देखता ही चला गया तथा आँख नीची कर ली और पिता क पैर छूकर चरणों की रज का माथे पर लगा लिया। तब पिता खुश हो गया, उसे लगा मेरे इस बेटे ने सच को पा लिया है। उस बेटे की आँख बताती थी कि उसने सत्य पा लिया, उसका व्यवहार बताता था कि उसने सच को पा लिया है | जो सत्य को पा लेता है वह चुप हो जाता है | जिन्हें सत्य प्राप्त हो गया है, जो सम्यग्दृष्टि है, वैराग्यवान हैं, वे संसार में रहते हुये भी उससे विरक्त रहत हैं। भरत चक्रवर्ती के पुत्र कभी किसी से बोलते नहीं थ। चक्रवर्ती को चिंता हो गई कि ये तीर्थकर के वंश में पैदा हुए और इस प्रकार गूंगे बहरे कैस हो सकते हैं? यहाँ तो भगवान की वाणी गलत सिद्ध हो जायेगी। उन्होंने भगवान से पूछा, तब भगवान ने कहा कि हे चक्री, तुम्हें मोह ने घेर रखा है इसलिये सत्य दिखाई नहीं पड़ता। सत्य यह है कि य सभी निकट भव्य हैं। ये तुम्हारे ही सामने दीक्षित होकर मुक्ति को प्राप्त हो जायेंगे । चक्रवर्ती सुनकर दंग रह गये और वही हुआ भी। सभी ने भगवान ऋषभदेव के चरणों में दीक्षा का निवेदन कर दिया और बाले कि सभी से क्या बालना, हम तो सिर्फ आपसे ही बोलेंगे | सभी से बालने के लिए हम गूंगे हैं। सभी ने दीक्षा ली और मुक्ति को प्राप्त कर लिया। इनका वैराग्य इतना था कि ये किसी से नहीं बोले और अपना कल्याण कर लिया । कहने का तात्पर्य यह है कि जिनका मोह चला गया, जिन्होंन सत्य को प्राप्त कर लिया, वह व्यर्थ नहीं (289)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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