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________________ क्या हो सकता है? इससे बढ़कर अनैतिक बात और क्या हो सकती है? उसने विद्यार्थी को समझाया कि आज मैं तुम्हें माफ कर रहा हूँ, अब ऐसी गलती पुनः मत करना। इसके बाद उसने शिक्षक की ओर मुड़कर कहा कि आप भी खड़े-खड़े देख रहे हैं और फिर भी आपने विद्यार्थी को मना नहीं किया । मुझे मूर्ख बनाया जा रहा है और आप देख रहे हैं। शिक्षक उस समय मौन होकर निरीक्षक महादय की बातों को सुनता रहा। अन्त में निरीक्षक महोदय ने कहा-अब तो मुझे लगता है कि आप भी इस क्लास में नये-नये आये हैं जो इन विद्यार्थियों को पहचानत ही नहीं हैं। उस शिक्षक ने कहा-आप सही कर रहे हैं। इस क्लास के क्लासटीचर अपनी मिसेज को साड़ी खरीदने बाजार तक गये हैं, इसीलिय उनकी जगह मुझ डुप्लीकेट क्लास टीचर बनाकर भेज दिया है। इस पर निरीक्षक ने खूब जोर से डाँटा और अचानक ही नम्र हा गया | कहा- आप लोग भाग्यशाली हैं, क्योंकि आज असली इन्स्पेक्टर नहीं आया। वह तो हनीमून मनान गया है। मुझे उसी जगह नकली इन्स्पक्टर बनाकर भेजा गया है। यदि आज असली इन्स्पक्टर होता, तो आप लोगों की खैर नहीं थी। हर जगह मायाचारी चल रही है | पर ध्यान रखना, मायाचारी का फल तिर्यंच गति है, जहाँ जाकर इस जीव को असहनीय कष्टों को सहन करना पड़ता है। छल-कपट स किया गया कोई भी कार्य छिपता नहीं है, वह एक-न-एक दिन प्रगट हो ही जाता है और आत्मा का मलिन करता है | अपनी आत्मा को मलिन हाने से बचाइये | यदि आर्जव धर्म को प्राप्त करना है, तो अपने मन को अपने वश में रखो | वक्र मन, कुटिल मन, मायाचारी से पूरित मन सदा विपत्तियां (243)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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